Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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योग विचारणा के प्रमुख अधिकारों": परिशिष्ट ४
२६१ योगस्थान रूप डमरूक के पूर्वोत्तर पार्श्व रूप सप्तसामयिक आदि वाले स्थान क्रमशः असंख्यातगुणे-असंख्यातगुणे अधिक-अधिक हैं। यह क्रम उभय पार्श्ववर्ती चतुःसामयिक योगस्थान तक समझना चाहिये और चतुः सामयिक से उत्तर पार्श्ववर्ती त्रिसामयिक और द्विसामयिक अनुक्रम से असंख्यातगुणे, असंख्यातगुणे हैं । जिसका दर्शक प्रारूप इस प्रकार है--
xxxxx०००० xxxx/द्विसामयिक योगस्थान xxx००००० xxx/त्रि . xxx००००xxx
|-चतुः " " . xx०००००xx
पञ्च " . . xx०००xx/
षट . . . xx०००xx/
सप्त " .
०००( अष्ट सामयिक योग स्थान Axo००xx\ सप्त " "
०xx षट् " " " k xx०००००xxx\पञ्च" .. . /xxxx००००००xxxx चतु.” "
स्थान की अपेक्षा योगस्थानों का जो आकार डमरूक जैसा बताया गया है। उसका दर्शक चित्र इस प्रकार है और इस डमरूक के आकार में ००० बिन्दु रूप योगस्थान है तथा बिन्दुओं के दोनों बाजुओं में दिये गये x X चौकड़ी रूप संकेत असंख्यातगुणे के प्रतीक हैं ।
जीव के योगस्थान की जो वृद्धि, हानि होती है, वह चार प्रकार की है
१ असंख्यभागाधिक वृद्धि, २ संख्यभागाधिक वृद्धि, ३ संख्यगुणाधिक वृद्धि, ४ असंख्यगुणाधिक वृद्धि ।
१ असंख्यभाग हानि, २ संख्यभाग हानि, ३ संख्यगुण हानि, ४ असंख्यगुण हानि । ।