Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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परिशिष्ट ७
पुद्गल (कर्म) बंध का कारण और
प्ररूपणा के प्रकार
पुद्गल कर्म द्रव्य का परस्पर सम्बन्ध स्नेहगुण से होता है। इसीलिए कर्मबन्ध के प्रसंग में स्नेह प्ररूपणा की जाती है। इस स्नेह गुण के कारण अनन्तानन्त पुद्गल वर्गणाएँ जीव से सम्बद्ध होती हैं । वह स्नेह प्ररूपणा तीन प्रकार की है-१ स्नेहप्रत्यय स्पर्धक प्ररूपणा, ३ नामप्रत्यय स्पर्धक प्ररूपणा, ३ प्रयोगप्रत्यय स्पर्धक प्ररूपणा । इनमें से स्नेह निमित्तक स्पर्धक की प्ररूपणा को स्नेहप्रत्यय स्पर्धक प्ररूपणा कहते हैं । शरीर बंधन नाम कर्म के उदय से परस्पर बंधे हुए शरीर पुद्गलों का आश्रय लेकर जो स्पर्धक की प्ररूपणा की जाती है, वह नामप्रत्यय स्पर्धक प्ररूपणा है अर्थात् बन्धन नाम निमित्तक शरीर प्रदेशों के स्पर्धक की प्ररूपणा को नामप्रत्यय स्पर्धक प्ररूपणा कहते हैं। प्रकृष्टयोग को प्रयोग कहते हैं। इस प्रयोगप्रत्ययभूतकारणभूत प्रकृष्ट योग के द्वारा ग्रहण किये गये जो पुद्गल हैं, उनके स्नेह का आश्रय करके जो स्पर्धक प्ररूपणा की जाती है, वह प्रयोगप्रत्यय स्पर्धक प्ररूपणा कहलाती है।
स्नेहप्रत्यय, नामप्रत्यय और प्रयोगप्रत्यय प्ररूपणाओं के लक्षण इस प्रकार जानना चाहिए
१ लोकवर्ती प्रथम अग्राह्य पुद्गल द्रव्यों में स्निग्धपने की तरतमता कहना स्नेहप्रत्यय प्ररूपणा है।
२ पाँच शरीर रूप परिणमते पुद्गलों में स्निग्धपने की तरतमता बताना . नामप्रत्यय प्ररूपणा है।