Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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वर्मणाओं सम्बन्धी वर्णन का सारांश : परिशिष्ट ६
२७६ अन्तिम २४वीं वर्गणा अग्रहणप्रायोग्य वर्गणा के नाम के अनन्तर इस प्रकार वर्गणाओं के नाम दिये हैं
२५ प्रथम ध्र व वर्गणा, २६ अध्र व वर्गणा, २७ शून्यान्तर वर्गणा, २८ अशून्यान्तर वर्गणा, २६ प्रथम ध्र वान्तर वर्गणा, ३० द्वितीय ध्र वान्तर वर्गणा, ३१ तृतीय ध्र वान्तर वर्गणा, ३२ चतुर्थ ध्र वान्तर वर्गणा, ३३ औदारिक तनुवर्गणा, ३४ वैक्रियतनुवर्गणा, ३५ आहारक तनुवर्गणा ३६ तैजस तनुवर्गणा, ३७ मिश्र स्कन्ध वर्गणा ३८ अचित्त महास्कन्ध वर्गणा।
भाष्य में किये गये वर्गणाओं के वर्णन को गाथा ६३३ से ६५३ तक देखिये।
इन सब वर्गणाओं का अवगाह अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। सर्वोत्कृष्ट महास्कन्ध वर्गणा पर्यन्त यद्यपि सभी वर्गणाएँ परमाणुओं की अपेक्षा अनुक्रम से मोटी हैं और अनुक्रम से मोटी होते जाने पर भी प्रत्येक मूल वर्गणा में की एक-एक उत्तरवर्गणा अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण के अवगाह वाली है और यदि इन प्रत्येक उत्तर वर्गणाओं में समुदाय की अपेक्षा अवगाह की विवक्षा करें तो परमाणु से लेकर सर्वोत्कृष्ट महास्कन्ध वर्गणा तक की सब उत्तर वर्गणाएं भी प्रत्येक अनन्तानन्त हैं और समुच्चय की अपेक्षा समस्त लोकाकाश प्रमाण अवगाह वालो हैं ।
दिगम्बर कर्म साहित्य में भी वर्गणाओं का विचार किया गया है । उस वर्णन में कुछ विभिन्नतायें रहने पर भी प्रायः समानता है। वहाँ वर्गणाओं के निम्नलिखित २३ भेद हैं
१ अणुवर्गणा, २ संख्याताणुवर्गणा, ३ असंख्याताणुवर्गणा, ४ अनन्ताणुवर्गणा, ५ आहार वर्गणा, ६ अग्रहण वर्गणा, ७ तेजस् वर्गणा, ८ अग्रहण वर्गणा, ६ भाषा वर्गणा, १० अग्रहण वर्गणा, ११ मनोवर्गणा, १२ अग्रहण वर्गणा, १३ कार्मणशरीर वर्गणा, १४ ध्र वस्कन्ध वर्गणा, १५ सान्तरनिरंतर वर्गणा, १६ ध्र वशून्य वर्गणा, १७ प्रत्येक शरीर वर्गणा, १८ ध्रु वशून्य वर्गणा, १६ बादर निगोद वर्गणा, २० ध्र वशून्य