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पंचसंग्रह : ६ ३ उत्कृष्ट योग से ग्रहण होने वाले पुद्गलों में स्निग्धता की तरतमता कहना प्रयोगप्रत्यय प्ररूपणा कहलाती है। ___ स्पर्धक वर्गणाओं के समुदाय से बनते हैं। अतएव इन तीनों प्रकार की प्ररूपणाओं में से स्नेहप्रत्यय स्पर्धक प्ररूपणा में अनन्तरोपनिधा से वर्गणाएं इस प्रकार होती हैं -
१ स्नेहप्रत्यय स्पर्धक की आदि की अनन्त वर्गणाएँ असंख्यातभाग हीन, . २ स्नेहप्रत्यय स्पर्धक की तदनन्तर की अनन्त वर्गणाएँ संख्यातभाग
हीन,
३ स्नेहप्रत्यय स्पर्धक की तदनन्तर की अनन्त वर्गणाएँ संख्यातगुण हीन,
४. स्नेहप्रत्यय स्पर्धक की तदनन्तर को अनन्त वर्गणाएँ असंख्यातगुण हीन, - ५ स्नेहप्रत्यय स्पर्धक की तदनन्तर की अनन्त वर्गणाएँ अनन्तगुग हीन ।
इस प्रकार स्नेह प्रत्यय स्पर्धक की अनन्त वर्गणाएँ पांच विभागों में विभाजित हैं-१ असंख्यातभाग हीन विभाग, २ संख्यातभाग हीन विभाग, ३ संख्यातगुण हीन विभाग, ४ असंख्यातगुण हीन विभाग ५ अनन्तगुण हीन विभाग ।
परम्परोपनिधा प्ररूपणा की अपेक्षा स्नेहप्रत्यय स्पर्धकगत वर्गणाओं का रूपक इस प्रकार जानना चाहिए
पूर्व वर्गणा की अपेक्षा बीच में कुछ वर्गणाओं को छोड़कर आगे की वर्गणा में परमाणुओं सम्बन्धी हीनाधिकता के कथन करने को परंपरोपनिधा कहते हैं । जो इस प्रकार है कि
असंख्यातभाग हानि विभाग में असंख्यात लोकातिक्रमण होने पर द्विगुण हानि, संख्यातभाग. हानि विभाग में असंख्यात लोकातिक्रमण होने पर द्विगुण हानि तथा संख्यातगुण हानि विभाग, असंख्यातगुण हानि और अनन्तगुण हानि विभाग, इन तीन विभागों में पहले से ही त्रिगुणादि हीनपना होने से