Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
View full book text
________________
पुद्गल (कर्म) बंध का कारण और उसकी प्ररूपणा : परिशिष्ट ७ २८३ द्विगुण हानि का अभाव है । यह पूर्वोक्त द्विगुण हानि रूप परंपरोपनिधा सर्व विभागों में प्राप्त न होने से दूसरे प्रकार से परंपरोपनिधा की प्ररूपणा इस प्रकार जानना चाहिए।
असंख्यातभाग हानि विभाग में प्रथम वर्गणा की अपेक्षा कुछ वर्गणाएँ असंख्यातभाग हीन, संख्यातभाग हीन, संख्यातगुण हीन, असंख्यातगुण होन, अनन्तगुण हीन हैं। अर्थात् असंख्यातभाग हीन विभाग में प्रथम वर्गणा की अपेक्षा आगे कितनी ही वर्गणाएँ यथाक्रम से पांचों हानि वाली होती हैं ।
इसी प्रकार संख्यातभाग हीन, संख्यातगुण हीन, असंख्यातगुण हीन और अनन्तगुण हीन विभाग में भी अपनी प्रथम वर्गणा की अपेक्षा उत्तर वर्गणाएँ भी हीन समझना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि यह हीनता अपनेअपने नाम के क्रम से प्रारम्भ करना चाहिए। जो इस प्रकार है
संख्यातभाग हानि में प्रथम वर्गणा की अपेक्षा आगे कितनी ही वर्गणाएँ पूर्व की असंख्यातभाग हानि के बिना बाद की शेष चार हानियों वाली होती हैं।
संख्यातगुण हानि में प्रथम वर्गणा की अपेक्षा आगे की कितनी ही वर्गणाएँ पूर्व की असंख्यातभाग और संख्यातभाग इन दो हानियों के बिना बाद की तीन हानियों वाली, असंख्यातगुण हानि में प्रथम वर्गणा की अपेक्षा आगे की कितनी ही वर्गणाएँ पूर्व की असंख्यातभाग, संख्यातभाग और संख्यातगुण इन तीन हानियों के बिना उत्तर की शेष दो हानियों वाली तथा अनन्तगुण हानि में प्रथम वर्गणा की अपेक्षा आगे की कितनी ही वर्गणाएँ पूर्वोक्त चार हानियों के बिना एक हानि वाली अर्थात् अनन्तगुण हानि वाली होती हैं। ___ अनन्तगुण हानि में अनन्तगुण बड़े-बड़े भागों की हानि होने से यहाँ अनन्तगुण में गुण शब्द से अनन्त पुद्गल राशि प्रमाण एक भाग ऐसे अनन्त भाग समझना चाहिए । परन्तु गुण शब्द से गुणाकार जैसा भाग नहीं समझना चाहिए । जहाँ-जहाँ हानि का प्रसंग आये वहाँ गुण शब्द से भाग-प्रमाण ही जानना चाहिए, किन्तु गुणाकार रूप नहीं और वृद्धि के प्रसंग में गुण शब्द से गुणाकार आशय समझना चाहिए ।