Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 335
________________ २८८ पंचसंग्रह : ६ साथ ही सदैव होते हैं, जिससे उनके दलिक की अलग से विवक्षा नहीं की है । परन्तु शरीर की तरह बंधन और संघातन नामकर्म को भी स्वतन्त्र अलग भाग मिलता है, यह ध्यान में रखना चाहिए। उक्त दृष्टियों को ध्यान में रखते हुए प्रदेशबंध से प्राप्त दलिक को उत्कृष्ट और जघन्य पद में विभाजित करने की प्रक्रिया जानना चाहिए। इसका वर्णन यथास्थान पूर्व में किया गया है। 00

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