Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधनकरण-प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट १
२४६
थोदाणुभागठाणा जहन्नठिइबंध - असुभपगईणं । समयवुड्ढीए किंचाहियाइं सुहियाण विवरीयं ॥७५।। पलियासंखियमेत्ता ठिइठाणा गंतु गंतु दुगुणाई । आवलिअसंखमेत्ता गुणा गुणंतरमसंखगुणं ।।७६।। सव्वजहन्नठिईए सव्वाण वि आउगाण थोवाणि । ठाणाणि उत्तरासु असंखगुणणाए सेढीए ॥७७॥ गंठीदेसे सन्नी अभव्वजीवस्स जो ठिईबंधो। ठिइवुड्ढीए तस्स उ बंधा अणुकड्ढिओ तत्तो ॥७८।। वग्गे-वग्गे अणुकड्ढी तिव्वमंदत्तणाइं . तुल्लाइं। उवघायघाइपगडी कुवन्ननवगं असुभवग्गो ।।७।। परघायबंधणतणु अंग सुवन्नाइ तित्थनिम्माणं । अगुरुलघूसासतिगं संघाय च्याल सुभवग्गो ॥८०॥ सायं थिराइ उच्चं सुरमणु दो-दो पणिदि चउरसं। . रिसह पसत्थविहगई . सोलस परियत्तसुभवग्गो ॥१॥ अस्सायथावरदसगनरयदुगं विहगगई य अपसत्था । पंचिदिरिसहचउरंसगेयरा असुभघोलणिया ॥२॥ मोत्तुमसंखंभागं जहन्न ठिइठाणगाण सेसाणि। गच्छंति उवरिमाए तदेकदेसेण अन्नाणि ॥८३।। एवं उवरि हुत्ता गंतुणं कंडमेत्त ठिइबंधा। पढमठिइठाणाणं अणुकड्ढी जाइ परिणिठं ॥८४॥ तदुवरिमआइयासु कमसो बीयाईयाण निटठाइ। ठिइठाणाणणुकडढी आउक्कस्सं ठिई जाव ।।८।। उवघायाईणेवं एसा परघायमाइसु विसेसो। उक्कोसठिइहितो हेट्ठमुहं कीरइ असेसं ॥८६॥ सप्पडिवक्खाणं पुण असायसायाइयाण पगईणं । ठावेसु ठिइठाणा अंतोकोडाइ नियनियगा ॥८७॥
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