Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
View full book text
________________
परिशिष्ट ४
योग विचारणा के प्रमुख अधिकारों
का स्पष्टीकरण
सलेश्य जीव का वीर्य-योग कर्मबंध का कारण है। ग्रन्थकार आचार्य ने इसकी प्ररूपणा निम्नलिखित दस अधिकारों द्वारा की है
१ अविभाग प्ररूपणा, २ वर्गणा प्ररूपणा ३ स्पर्धक प्ररूपणा, ४ अन्तर प्ररूपणा, ५ स्थान प्ररूपणा, ६ अनन्तरोपनिधा प्ररूपणा, ७ परंपरोपनिधा प्ररूपणा ८ वृद्धि (हानि) प्ररूपणा, ६ काल प्ररूपणा, १० जीवाल्पबहुत्व प्ररूपणा।
इनमें से स्थान प्ररूपणा, काल प्ररूपणा और जीवाल्पबहुत्व प्ररूपणा को स्पष्ट करते हैं । शेष प्ररूपणाएँ सुगम होने से उनको यथाप्रसंग ग्रन्थ से जान लेना चाहिये। स्थान प्ररूपणा
श्रेणी के असंख्यातवें भाग प्रमाण स्पर्धकों का एक योगस्थान होता है और ऐसे ये सभी योगस्थान भी श्रेणी के असंख्यातवें भागगत प्रदेश प्रमाण होते हैं।
योगस्थान के तीन भेद हैं-उपपाद योगस्थान, एकान्तानुवृद्धि योगस्थान, परिणाम योगस्थान । भव धारण करने के पहले समय में रहने वाले