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परिशिष्ट ३
वीर्य शक्ति का स्पष्टीकरण एवं भेद-प्रभेद
दर्शक प्रारूप
वीर्य शक्ति भी ज्ञान, दर्शन आदि अनन्त गुणों की तरह जीव का शाश्वत अविनाभावी गुण है। जीव कैसी भी अविकसित दशा में हो लेकिन उसमें यथायोग्य वीर्य शक्ति अवश्य ही पायी जाती है । - जीव दो प्रकार के हैं-संसारी और मुक्त । मुक्त जीवों में वीर्य शक्ति समान होती है। किसी प्रकार की हीनाधिकता नहीं होती है । जबकि संसारी जीव विविध प्रकार के होने से उनकी वीर्य शक्ति में भिन्नता होती है। संसारी जीवों की वीर्य शक्ति का ही अपर नाम योग है। इसका कारण यह है कि संसारी जीव की वीर्य शक्ति की अभिव्यक्ति मन, वचन और काय के योग-साध न, माध्यम से होती है । इसीलिये इसे योग कहते हैं। ____ अथवा जीव दो प्रकार के हैं-अलेश्य और सलेश्य । अलेश्य (लेश्यारहित) जीवों की वीर्य शक्ति समस्त कर्मों के क्षय हो जाने से क्षायिक कहलाती है। निःशेष रूप से कर्मक्षय होने के कारण वह वीर्य शक्ति कर्मबंध का कारण नहीं बनती है। इसलिये अलेश्य जीवों का कोई भेद नहीं है और न उनकी वीर्य शक्ति में तरतमताजनित अन्तर है। किन्तु सलेश्य (लेश्या सहित) जीवों की वीर्य शक्ति कर्मबंध का कारण होने से यहाँ उनकी वीर्य शक्ति का विस्तार से विचार करते हैं ।