Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 293
________________ २४६ पंचसंग्रह : ६ होई पओगो जोगो तठाणविवड्ढणाए जो उ रसो। परिवड्ढेइ जीवे पओगफड्डे तयं बेंति ॥३६॥ अविभागवग्गफड्डगअंतरठाणाइ एत्थ जह पुवि । ठाणाइवग्गणाओ अणंतगुणणाए गच्छंति ॥३७।। तिण्हंपि फड्डगाणं जहन्नउक्कोसगा कमा ठविउं । नेयाणंतगुणाओ वग्गणा हफड्डाओ ॥३८।। अणुभागविसेसाओ मूलुत्तरपगइभेयकरणं तु। तुल्लस्सावि दलस्सा पगइओ गोणनामाओ॥३९।। ठिइबंधु दलस्स ठिई पएसबंधो पएसगहणं जं। ताण रसो अणुभागो तस्समुदाओ पगइबंधो ॥४०।। मूलुत्तरपगईणं पुव्वं दलभागसंभवो वुत्तो। रसभेएणं इत्तो मोहावरणाण निसुणेह ॥४१।। सव्वुक्कोसरसो जो मूलविभागस्सणंतिमो भागो। सव्वघाईण दिज्जइ सो इयरो देसघाईणं ॥४२॥ उक्कोसरसस्सद्ध मिच्छे अद्ध तु इयरघाईणं । संजलणनोकसाया सेसं अद्धद्धयं लेंति ॥४३।। जीवस्सज्झवसाया सुभासुभासंखलोकपरिमाणा। सव्वजीयाणंतगुणा एक्केक्के होंति भावाणू ॥४४॥ एकज्झवसायमज्जियस्स दलियस्स किं रसो तुल्लो। नहु होति गंतभेया साहिज्जंते निसामेह ॥४५।। सव्वप्परसे गेण्हइ जे बहवे तेहिं वग्गणा पढमा। अविभागुत्तरिएहिं अन्नाओ विसेसहीणेहिं ॥४६।। दव्वेहिं वग्गणाओ सिद्धाणमणंतभाग तुल्लाओ। एयं पढमं फड्ड अओ परं नत्थि रूवहिया ।।४७।। सम्वजियाणंतगुणे पलिभागे लंघिउं पुणो अन्ना। एवं भवंति फड्डा सिद्धाणमणंतभागसमा ॥४८॥

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