Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ६ नाम और गोत्र कर्म के स्थितिबंधाध्यवसायों से आठवें अन्तराय कर्म के और उसके समान स्थिति वाले ज्ञानावरण, दर्शनावरण तथा वेदनीय कर्म के स्थितिबंधाध्यवसाय असंख्यातगुणे हैं।
शंका-नाम और गोत्र कर्म की स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की है तथा ज्ञानावरणादि चार कर्मों की तीस कोडाकोडी सागरोपम की है । अतएव नाम और गोत्र कर्म से दस कोडाकोडी सागरोपम मात्र अधिक है, जिससे नाम और गोत्र कर्म के स्थितिबंधाध्यवसायों से ज्ञानावरणादि के स्थितिबंधाध्यवसाय असंख्यातगुणे कैसे होते हैं ?
समाधान यद्यपि नाम और गोत्र से ज्ञानावरणादि चार कर्मों की स्थिति डेढी है फिर भी स्थितिबंध के हेतुभूत अध्यवसाय असंख्यातगुणे ही होते हैं। क्योंकि यह पहले कहा जा चुका है कि पूर्वपूर्व स्थितिस्थानों से उत्तरोत्तर स्थितिस्थानों में इस क्रम से अध्यवसाय बढ़ते हैं कि पल्योपम के असंख्यातवें भाग स्थितिस्थानों का अतिक्रमण करने के बाद दुगुने होते हैं, पुनः उतने स्थानों का अतिक्रमण करने पर दुगुने होते हैं। इस प्रकार होने से जब मात्र एक पल्योपम प्रमाण स्थितिस्थानों को उलांघने से ही असंख्यातगुणे होते हैं, क्योंकि एक पल्योपम में पल्योपम के असंख्यातवें भाग जितने खंड असंख्यात होते हैं तो फिर दस कोडाकोडी सागरोपम के अंत में क्यों असंख्यातगुणे नहीं होंगे ? अर्थात् होंगे ही।
ज्ञानावरणादि के स्थितिबंधाध्यवसायों से कषायमोहनीय के असंख्यातगुणे हैं और उससे दर्शनमोहनीय के स्थितिबंधाध्यवसाय असंख्यातगुणे हैं। क्योंकि उनकी स्थिति अनुक्रम से चालीस कोडाकोडी सागरोपम और सत्तर कोडाकोडी सागरोपम है।
इस प्रकार से प्रकृतिसमुदाहार का आशय जानना चाहिये । पूर्व में जो यह कहा था कि स्थिति समुदाहार के विषय में तीव्रमंदता आगे कहेंगे । अतः अब उस तीव्रमंदता का कथन करते हैं।