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बंधनकरण प्ररूपणा अधिकार : गाथा ११२
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'वह और अन्य' इस प्रकार जहां तक अध्यवसायों की अनुकृष्टि होती है, उसमें से जिस अध्यवसाय द्वारा द्विस्थानक रस बंधता है, वह अनाकारोपयोग द्वारा बंध सकता है ।
अब समस्त स्थितिस्थानों का अल्पबहुत्व कहते हैं
चउठाणाई जवमज्झ हिदुउवरि सुभाण ठिइबंधा । संखेज्जगुणा ठिइठाणगाई असुभाण मीसा य ॥ ११२ ॥
शब्दार्थ - चउठाणाई - चतुःस्थानकादि, जवमज्झ-यव मध्य, हिट्ठउवरिं—नीचे और ऊपर के, सुभाण - शुभ प्रकृतियों का, ठिइबंध — स्थितिबंध, संखेज्जगुणा - संख्यातगुण, ठिठाणगाई -स्थितिस्थान, असुभाणअशुभ प्रकृतियों का, मीसा - मिश्र, य- - और ।
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गाथार्थ - - चतुः स्थानकादि रस योग्य स्थितिस्थानकों के यवमध्य से नीचे और ऊपर के स्थितिस्थान अनुक्रम से संख्यातगुण हैं । शुभ - अशुभ प्रकृतियों का जघन्य स्थितिबंध क्रमश: संख्यातगुण और विशेषाधिक हैं और उससे अशुभ प्रकृतियों के द्विस्थानकादि रसयोग्य स्थितिस्थानों के यवमध्य से नीचे - ऊपर के स्थितिस्थान और मिश्र स्थितिस्थान संख्यातगुण हैं ।
विशेषार्थ -- गाथा में समस्त स्थितिस्थानों आदि का अल्पबहुत्व बताया है
जितने और जिन स्थितिस्थानों को बांधता हुआ जीव चतुः स्थानक रसबंध करता है, उनका जो यवमध्य वह चतुःस्थानक रसयवमध्य कहलाता है । इसी प्रकार त्रिस्थानक रसयवमध्य और द्विस्थानक रसयवमध्य के लिये भी समझना चाहिये ।
परावर्तमान पुण्य प्रकृतियों के चतुःस्थानक रसयवमध्य से नीचे के स्थिति-स्थान अल्प हैं, उनसे चतुःस्थानक रसयवमध्य से ऊपर के स्थितिस्थान संख्यातगुण हैं, उनसे परावर्तमान शुभ प्रकृतियों के त्रिस्थानक रसयवमध्य से नीचे के स्थितिस्थान संख्यातगुण हैं,