Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ६ वेदनीय—असातावेदनीय का प्रदेश प्रमाण सर्वाल्प है, उससे सातावेदनीय का विशेषाधिक है।
मोहनीय-सबसे अल्प अप्रत्याख्यानावरण मान का दल विभाग है, उससे अप्रत्याख्यानावरण क्रोध का विशेषाधिक, उससे अप्रत्याख्यानावरण माया का विशेषाधिक, उससे अप्रत्याख्यानावरण लोभ का विशेषाधिक, उससे प्रत्याख्यानावरण मान का विशेषाधिक, उससे प्रत्याख्यानावरण क्रोध का विशेषाधिक, उससे प्रत्याख्यानावरण माया का विशेषाधिक, उससे प्रत्याख्यानावरण लोभ का विशेषाधिक है, उससे अनन्तानुबंधि मान का विशेषाधिक, उससे अनन्तानुबंधि क्रोध का विशेषाधिक, उससे अनन्तानुबंधि माया का विशेषाधिक, उससे अनन्तानुबंधि लोभ का विशेषाधिक, उससे मिथ्यात्व का विशेषाधिक, उससे जुगुप्सा का अनन्तगुण, उससे भय का विशेषाधिक, उससे हास्य और शोक का विशेषाधिक और स्वस्थान में परस्पर तुल्य, उससे रति और अरति का विशेषाधिक और स्वस्थान में परस्पर तुल्य, उससे स्त्रीवेद एवं नपुसकवेद का विशेषाधिक और स्वस्थान में परस्पर तुल्य, उससे संज्वलन क्रोध का विशेषाधिक, उससे संज्वलन मान का विशेषाधिक, उससे पुरुषवेद का विशेषाधिक, उससे संज्वलन माया का विशेषाधिक और उससे संज्वलन लोभ का असंख्यातगुण दल विभाग है।
आयुकर्म-आयुचतुष्क का दल विभाग परस्पर तुल्य है।
नामकर्म-देव और नरक गति का दल विभाग अल्प है, और स्वस्थान में तुल्य है, उससे मनुष्य गति का विशेषाधिक है, उससे तिर्यंच गति का विशेषाधिक है। ___जातिनामकर्म में द्वीन्द्रियादि जातिचतुष्क का प्रदेश प्रमाण अल्प है और स्वस्थान में परस्पर तुल्य है, उससे एकेन्द्रिय जाति का विशेषाधिक है।
शरीरनामकर्म में आहारक शरीर का प्रदेश प्रमाण अल्प है, उससे वैक्रिय शरीर का विशेषाधिक है, उससे औदारिक शरीर का