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बंधनकरण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १०५,१०६
२२५ उसे स्थितिसमुदाहार कहते हैं। उसके भी तीन अनुयोग द्वार इस प्रकार हैं-१. प्रगणना-अध्यवसायों की गणना करना, २. अनुकृष्टि, ३. तीव्रमंदता । उसमें से पहले प्रगणना प्ररूपणा का विचार करते हैं। प्रगणना प्ररूपणा
ठिइठाणे ठिइठाणे अज्झवसाया असंखलोगसमा। कमसो विसेसअहिया सत्तण्हाउस्ससंखगुणा ॥१०॥ पल्लासंखसमाओ गंतूण ठिईओ होंति ते दुगुणा।
सत्तण्हज्झवसाया गुणगारा ते असंखेज्जा ॥१०६॥ शब्दार्थ-ठिइठाणे ठिइठाणे-स्थितिस्थान-स्थितिस्थान में, अज्झवसायाअध्यवसाय, असंखलोगसमा-असंख्यात लोकाकाश प्रमाण, कमसो-- अनुक्रम से, विसेसअहिया-विशेषाधिक, सत्तण्हाउस्ससंखगृणा-सात कर्मों के तथा आयु के असंख्यातगुणे ।
पल्लासंखसमाओ-पल्योपम के असंख्यातवें भाग के बराबर, गंतूणजाने पर, ठिइओ-स्थितिस्थान, होति-होते हैं, ते–वे, दुगुणा-दुगुने, सत्तण्हज्झवसाया-सात कर्मों के अध्यवसाय, गुणागारा-गुणाकार, ते-वे, असंखेज्जा-असंख्यात ।
गाथार्थ-स्थितिस्थान-स्थितिस्थान में (प्रत्येक स्थितिस्थान में) उनके बंध के हेतुभूत अध्यवसाय असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण होते हैं । सात कर्मों के वे अनुक्रम से विशेषाधिक हैं और आयु कर्म के असंख्यातगुणे हैं ।
सात कर्मों में पल्योपम के असंख्यातवें भाग जितने स्थितिस्थान उलांघने पर वे दुगुने होते हैं। ऐसे द्विगुण वृद्धिस्थान असंख्यात हैं।
विशेषार्थ-एक समय में एक साथ जितनी स्थिति बंधे, उसे स्थितिस्थान कहते हैं। जैसे कि जघन्य स्थिति यह पहला स्थितिस्थान, समयाधिक जघन्य स्थिति यह दूसरा स्थितिस्थान, इस प्रकार