Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ६
ar fवशेषाधिक है और उससे श्वेत वर्ण का दल प्रमाण विशेषाधिक है ।
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गंधना में सुरभिगंध का प्रदेश प्रमाण अल्प है और उससे दुरभिगंध का विशेषाधिक है ।
रसनाम में कटुकरस का दल विभाग अल्प है, उससे तिक्त रस का विशेषाधिक, उससे कषाय रस का विशेषाधिक, उससे आम्ल रस का विशेषाधिक और उससे मधुर रस का विशेषाधिक दल विभाग है ।
स्पर्शनाम में कर्कश और गुरु स्पर्श का दल विभाग अल्प है और स्वस्थान में परस्पर तुल्य है, उससे मृदु और लघु स्पर्श का विशेषाधिक है तथा स्वस्थान में दोनों का परस्पर तुल्य है, उससे रूक्ष और शीत स्पर्श का विशेषाधिक है एवं स्वस्थान में परस्पर तुल्य है, उससे स्निग्ध और उष्ण स्पर्श का विशेषाधिक है तथा स्वस्थान में परस्पर तुल्य है ।
आनुपूर्वीनाम में देवानुपूर्वी एवं नरकानुपूर्वी का प्रदेश प्रमाण अल्प है तथा स्वस्थान में दोनों का परस्पर तुल्य है, उससे मनुष्यानुपूर्वी का विशेषाधिक और उससे तिर्यगानुपूर्वी नाम का दल प्रमाण विशेषाधिक है ।
त्रस नाम का प्रदेश प्रमाण अल्प है, उससे स्थावर नाम का विशेषाधिक है।
पर्याप्त नाम का प्रदेश प्रमाण अल्प है, उससे अपर्याप्त नाम का विशेषाधिक है ।
इसी प्रकार स्थिर अस्थिर, शुभ-अशुभ, सुभग- दुभंग, आदेय-अनादेय, सूक्ष्म - बादर और प्रत्येक साधारण में से पूर्व का अल्प और उत्तर का विशेषाधिक के क्रम से अल्पबहुत्व जानना चाहिए ।
अयशः कीर्ति नाम कर्म का प्रदेशाग्र अल्प है, उससे यशः कीर्ति