Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ६
अनुक्रम से, काले ईए-अतीत काल में, पुट्ठा-स्पर्श किये हैं, जिएण-जीव ने, ठाणा-स्थान, भमंतेणं--भ्रमण करते हुए।
तत्तो-उससे, विसेसअहियं-विशेषाधिक, जवमज्माउवरिमाइं-यवमध्य से ऊपर के, ठाणाइं-स्थान, तत्तो-उससे, कंडगहेट्ठा-कंडक से नीचे के, तत्तोवि-उससे भी, ह–निश्चय ही, सवठाणाइं-सर्वस्थान ।
गाथार्थ-अतीतकाल में भ्रमण करते हुए जीव ने दो, चार, आठ और तीन समय काल वाले तथा शेष स्थानों को अनुक्रम से असंख्यातगुणे काल तक स्पर्श किया है ।
उससे यवमध्य से ऊपर के स्थानों का, उससे कंडक के नीचे के स्थानों का और उससे सर्वस्थानों का अनुक्रम से विशेषाधिक स्पर्शना काल है।
विशेषार्थ-इन दो गाथाओं में अतीत काल में भ्रमण करते हुए जीव द्वारा किया गया स्पर्शना काल और उन रसस्थानों की स्पर्शना का अर्थात् बंधकाल का अल्पबहुत्व बतलाया है । ____सर्वप्रथम स्पर्शनाकाल को बतलाते हैं कि अतीत काल में भ्रमण करते हुए जीव ने दो समय काल वाले रसबंधस्थानों को अल्प काल ही स्पर्श किया है अर्थात् उन स्थानों को अल्प काल पर्यन्त ही बांधा है। उससे नीचे के चार समय काल वाले स्थानों को असंख्यातगुण काल स्पर्श किया और उतने ही काल ऊपर के चार समय काल वाले स्थानों का स्पर्श किया है। उससे आठ समय काल वाले यवमध्य स्थानों को असंख्यातगुणे काल स्पर्श किया है। उससे यवमध्य से नीचे के पाँच, छह और सात समय काल वाले अनुभाग स्थानों का समुदित स्पर्शना काल असंख्यातगुण है और इतना ही यवमध्य से ऊपर के सात, छह और पांच समय काल वाले स्थानों का (तीनों का) मिलाकर स्पर्शना काल है ।
इसका तात्पर्य यह है कि संसार में परिभ्रमण करने वाले जीव