Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधनकरण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ६६,१००
२११ चाहिये फिर संयत का उत्कृष्ट बंध फिर देशविरत का दोनों, अविरत चारों, संज्ञीपंचेन्द्रिय के चारों का क्रमशः संयत के उत्कृष्ट स्थितिबंध से संख्यातगुण जानना चाहिए ।
विशेषार्थ-इन दो गाथाओं में कौन किससे अधिक स्थितिबंध करता है इसका अल्पबहुत्व बतलाया है
सूक्ष्मसंपरायगुणस्थानवर्ती संयत के अतीव अल्पकषाय होने से तज्जन्य अत्यल्प स्थितिबंध होता है । अतएव उस संयत का स्थितिबंध सबसे अल्प है।
उससे बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त का जघन्य स्थितिबंध असंख्यातगुण है, उससे सूक्ष्म पर्याप्त एकेन्द्रिय का जघन्य स्थितिबंध विशेषाधिक है, उससे बादर अपर्याप्त का जघन्य स्थितिबंध विशेषाधिक है, उससे सूक्ष्म अपर्याप्त का जघन्य स्थितिबंध विशेषाधिक है, उससे सूक्ष्म पर्याप्त का उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेषाधिक है, उससे बादर अपर्याप्त का उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेषाधिक है, उससे सूक्ष्म पर्याप्त का उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेषाधिक है और उससे बादर पर्याप्त का उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेषाधिक है। ___ इसी प्रकार पर्याप्त-अपर्याप्त विकलेन्द्रियों और असंज्ञी पंचेन्द्रिय का जघन्य और उत्कृष्ट स्थितिबंध अनुक्रम से अधिक-अधिक जानना चाहिये । वह इस प्रकार-बादर पर्याप्त के उत्कृष्ट स्थितिबंध से पर्याप्त द्वीन्द्रिय का जघन्य स्थितिबंध संख्यातगुण है, उससे अपर्याप्त द्वीन्द्रिय का जघन्य स्थितिबंध विशेषाधिक है, उससे अपर्याप्त द्वीन्द्रिय का उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेषाधिक है, उससे पर्याप्त द्वीन्द्रिय का उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेषाधिक है।। ___ उससे पर्याप्त त्रीन्द्रिय का जघन्य स्थितिबंध विशेषाधिक है, उससे अपर्याप्त त्रीन्द्रिय का जघन्य स्थितिबंध विशेषाधिक है, उससे अपर्याप्त त्रीन्द्रिय का उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेषाधिक है, उससे पर्याप्त त्रीन्द्रिय का उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेषाधिक है।