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पंचसंग्रह : ६
उनसे जघन्य स्थितिबंध असंख्यातगुण है। क्योंकि वह अंतःकोडाकोडी सागरोपम प्रमाण है। श्रेणि पर नहीं चढ़े संज्ञी पंचेन्द्रिय जघन्य भी अतःकोडा-कोडी सागरोपम प्रमाण ही स्थितिबंध करते हैं। ___ उससे स्थितिस्थान संख्यातगुण हैं। उसमें ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अंतराय कर्म के कुछ अधिक उनतीसगुने हैं। मिथ्यात्वमोहनीय के कुछ अधिक उनहत्तरगुने हैं और नाम व गोत्र कर्म के कुछ अधिक उन्नीस गुने हैं।
उनसे उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेषाधिक है। क्योंकि जघन्य स्थिति और अबाधा का भी उसके अंदर समावेश हो जाता है ।
सात कर्मों सम्बन्धी उक्त अल्पबहुत्व का सुगमता से बोध कराने वाला प्रारूप पृष्ठ २१६ पर देखिये ।
अब आयुकर्म संबंधी अल्पबहुत्व कहते हैं
आउसु जहन्नबाहा जहन्नबंधो अबाहठाणाणि । उक्कोसबाह नाणंतराणि एगंतरं तत्तो ॥१०३॥ ठिइबंधट्टाणाइ उक्कोसठिई तओ वि अब्भहिया ।
सन्निसु अप्पाबहुयं दसट्ठभेयं इमं भणियं ॥१०४॥ शब्दार्थ-आउसु-आयुकर्म में, जहन्नबाहा-जघन्य अबाधा, जहन्न बंधो-जघन्य स्थितिबंध, अबाहठाणाणि-अबाधास्थान, उक्कोसबाहउत्कृष्ट अबाधा, नाणंतराणि-नाना अंतर, एगंतरं-एक अंतर, तत्तो–उसके बाद, ठिइबंधट्ठाणाइ-स्थितिबंधस्थान, उक्कोसठिई-उत्कृष्ट स्थिति, तओवि-उससे भी, अब्भहिया-अधिक, सन्निसु-संज्ञी जीवों में, अप्पाबहुथंअल्प-बहुत्व, दसटुभेयं-दस और आठ भेद, इमं—यह, भणियं- कहे हैं ।
गाथार्थ-आयुकर्म में जघन्य अबाधा, उससे जघन्य स्थितिबंध, अबाधास्थान, उत्कृष्ट अबाधा, नाना अंतर, एक अंतर, स्थितिबंधस्थान और उससे भी उत्कृष्ट स्थिति विशेषाधिक है।