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________________ २१८ पंचसंग्रह : ६ उनसे जघन्य स्थितिबंध असंख्यातगुण है। क्योंकि वह अंतःकोडाकोडी सागरोपम प्रमाण है। श्रेणि पर नहीं चढ़े संज्ञी पंचेन्द्रिय जघन्य भी अतःकोडा-कोडी सागरोपम प्रमाण ही स्थितिबंध करते हैं। ___ उससे स्थितिस्थान संख्यातगुण हैं। उसमें ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अंतराय कर्म के कुछ अधिक उनतीसगुने हैं। मिथ्यात्वमोहनीय के कुछ अधिक उनहत्तरगुने हैं और नाम व गोत्र कर्म के कुछ अधिक उन्नीस गुने हैं। उनसे उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेषाधिक है। क्योंकि जघन्य स्थिति और अबाधा का भी उसके अंदर समावेश हो जाता है । सात कर्मों सम्बन्धी उक्त अल्पबहुत्व का सुगमता से बोध कराने वाला प्रारूप पृष्ठ २१६ पर देखिये । अब आयुकर्म संबंधी अल्पबहुत्व कहते हैं आउसु जहन्नबाहा जहन्नबंधो अबाहठाणाणि । उक्कोसबाह नाणंतराणि एगंतरं तत्तो ॥१०३॥ ठिइबंधट्टाणाइ उक्कोसठिई तओ वि अब्भहिया । सन्निसु अप्पाबहुयं दसट्ठभेयं इमं भणियं ॥१०४॥ शब्दार्थ-आउसु-आयुकर्म में, जहन्नबाहा-जघन्य अबाधा, जहन्न बंधो-जघन्य स्थितिबंध, अबाहठाणाणि-अबाधास्थान, उक्कोसबाहउत्कृष्ट अबाधा, नाणंतराणि-नाना अंतर, एगंतरं-एक अंतर, तत्तो–उसके बाद, ठिइबंधट्ठाणाइ-स्थितिबंधस्थान, उक्कोसठिई-उत्कृष्ट स्थिति, तओवि-उससे भी, अब्भहिया-अधिक, सन्निसु-संज्ञी जीवों में, अप्पाबहुथंअल्प-बहुत्व, दसटुभेयं-दस और आठ भेद, इमं—यह, भणियं- कहे हैं । गाथार्थ-आयुकर्म में जघन्य अबाधा, उससे जघन्य स्थितिबंध, अबाधास्थान, उत्कृष्ट अबाधा, नाना अंतर, एक अंतर, स्थितिबंधस्थान और उससे भी उत्कृष्ट स्थिति विशेषाधिक है।
SR No.001903
Book TitlePanchsangraha Part 06
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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