Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ६
इस अल्प - बहुत्व के अनुसार दूसरे जीव-भेदों में भी आगमानुसार अल्प- बहुत्व जान लेना चाहिये । वह इस प्रकार
अपर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय, अपर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय और पर्याप्त अपर्याप्त बादर, सूक्ष्म एकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय इन प्रत्येक में आयुकर्म की जघन्य अबाधा अल्प है ।
उससे जघन्य स्थितिबंध क्षुल्लक भवरूप होते से संख्यातगुण है । उससे अबाधास्थान संख्यातगुण है ।
उससे उत्कृष्ट अबाधा विशेषाधिक है ।
उससे भी स्थितिबंधस्थान संख्यातगुण हैं । क्योंकि वे जघन्य स्थिति न्यून पूर्व कोटि प्रमाण हैं ।
उनसे उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेषाधिक है । उसमें जघन्य स्थिति और अबाधा का भी समावेश हो जाता है ।
२२२
क्रम
१.
२.
३.
४.
उक्त कथन का दर्शक प्रारूप इस प्रकार है
पर्याप्त संज्ञी - असंज्ञी पंचेन्द्रिय के सिवाय शेष जीव-भेदों में आयुकर्म का अल्प- बहुत्व
अल्प-बहुत्व
नाम
जघन्य अबाधा जघन्य स्थितिबंध
अबाधा स्थान
उत्कृष्ट अबाधा
५. स्थितिबंधस्थान
उत्कृष्ट स्थितिबंध
अल्प
संख्यातगुण
"1
विशेषाधिक
संख्यातगुण
विशेषाधिक
अन्तर्मुहूर्त
जघन्य
विशेष
अबाधासहित
क्षुल्लक भव
जघन्य
अबाधान्यून स्वआयु के तीसरे भाग
प्रमाण
स्वआयु के तीसरे भाग
प्रमाण
स्व आयु के तीसरे भाग अधिक जघन्य स्थिति न्यून पूर्व कोटि
के समय
प्रमाण
स्वआयु के तीसरे भाग अधिक पूर्वकोटिवर्ष