Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधनकरण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १०३,१०४
२२१ उक्त कथन का सुगमता से बोध कराने वाला प्रारूप इस प्रकार है
पर्याप्त संज्ञी-असंज्ञी पंचेन्द्रिय का आयुकर्म में अल्प-बहुत्व ।
क्रम
____ नाम
नाम
प्रकार
विशेष
जघन्य अबाधा
| अल्प
अन्तर्मुहूर्त
जघन्य स्थितिबंध | संख्यातगुण
जघन्य अबाधासहित क्षुल्लकभव प्रमाण
अबाधास्थान
जघन्य अबाधारहित पूर्वकोटि के तीसरे भाग के समय प्रमाण
उत्कृष्ट अबाधा । विशेषाधिक
पूर्वकोटि के तीसरे भाग प्रमाण
निषेक के द्विगुण
| असंख्यातगुण हानि स्थान
पल्योपम के प्रथम वर्गमूल के असंख्य भाग के समय प्रमाण
द्विगुण हानि के एक अंतर के स्थान
पल्योपम के असंख्याता वर्गमूल के समय प्रमाण
७.
सर्वस्थितिस्थान
अवाधारूप अन्तर्मुहूर्त अधिक क्षुल्लकभवन्यून पूर्वकोटि के तीसरे भाग अधिक असंज्ञी के पल्य का असंख्यातवां भाग और संज्ञी के तेतीस सागरोपम के समय प्रमाण
८.
उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेषाधिक
पूर्वकोटि के १/३ भाग अधिक ३३ सागर संज्ञी का तथा पूर्वकोटि का १/३ भाग अधिक पल्य का असंख्यात भाग असंज्ञी का