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बंधनकरण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ८२ परावर्तमान अशुभ प्रकृतिवर्ग
अस्सायथावरदसगनरयदुगं विहगगई य अपसत्था ।
पंचिदिरिसहचउरंसगेयरा असुभघोलणिया ॥२॥ शब्दार्थ-अस्साय-असातावेदनीय, थावरदसग-स्थावरदशक, नरयदुर्ग-नरकद्विक, विहगगई—विहायोगति, य-और, अपसत्था-अशुभ, पंचिदिरिसहचउरंसगेवरा-पंचेन्द्रिय, वज्रऋषभनाराचसंहनन और समचतुरस्रसंस्थान से इतर, असुभघोलणिया-परावर्तमान अशुभ प्रकृतियां हैं।
गाथार्थ-असातावेदनीय, स्थावरदशक (स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त साधारण, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय, अयशः कीर्ति), नरकद्विक (नरकगति, नरकानुपूर्वी), अशुभ विहायोगति, पंचेन्द्रिय से इतर आदि की चार जातियां, वज्रऋषभनाराचसंहनन से इतर शेष पाँच संहनन, समचतुरस्रसंस्थान से इतर शेष पांच संस्थान ये परावर्तमान अशुभ प्रकृतियाँ हैं।
विशेषार्थ-गाथा में उन प्रकृतियों का संकेत किया गया है जिनका परावर्तमान अशुभ प्रकृति वर्ग में समावेश होता है । ऐसी प्रकृतियाँ अट्ठाईस हैं। __पूर्वाचार्यों ने परावर्तमान प्रकृतियों का घोलनिका यह नामकरण किया है। इसका कारण यह है कि ये प्रकृतियाँ परावर्तनभाव को प्राप्त करके घोलन परिणाम से बंधती हैं।
इन चार वर्गों में की प्रकृतियों की परस्पर अनुकृष्टि और तीव्रमंदता समान है। इसीलिये इनके चार वर्ग बनाये हैं।
इस प्रकार वर्ग प्ररूपणा करके अब उनमें अनुकृष्टि का विचार प्रारम्भ करते हैं। उनमें से पहले अशुभ अपरावर्तमान प्रकृतियों की अनुकृष्टि का कथन करते हैं। अशुभ अपरावर्तमान प्रकृतियों को अनुकृष्टि
मोत्तुमसंखंभागं जहन्न ठिइठाणगाण सेसाणि । गच्छंति उवरिमाए तदेकदेसेण अन्नाणि ॥३॥