Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ६ कोडाकोडी सागरोपम की स्थिति ईशान तक के देवों को छोड़कर शेष चार गति के जीव यथासंभव बाँधते हैं तब स्थावर की अठारह कोडाकोडी से बीस कोडाकोडी तक की स्थिति मात्र ईशान तक के देव ही बांधते हैं, इसलिए त्रस और स्थावर दोनों के बीस से अठारह कोडाकोडी तक के स्थितिस्थान अनाक्रांत (शुद्ध) होते हैं और अठारह कोडाकोडी सागरोपम से नीचे के स्थावर नामकर्म की अभव्यप्रायोग्य जघन्य स्थिति तक के स्थितिस्थान नारक के सिवाय तीन गति के जीव परावर्तन परिणाम से बाँधते हैं। जिससे इतने ही स्थितिस्थान आक्रांत होते हैं।
अब उक्त कथन के आधार से त्रसनामकर्म की अनुकृष्टि कहते हैं कि त्रसनामकर्म की उत्कृष्ट स्थिति बाँधते जो अनुभाग बन्ध के अध्यवसायस्थान होते हैं उनका असंख्यातवां भाग छोड़कर शेष सभी समयोन उत्कृष्ट स्थिति बाँधते होते हैं तथा दूसरे नवीन भी होते हैं । समयोन उत्कृष्ट स्थिति बाँधते जो रसबन्ध के अध्यवसाय होते हैं, उनका असंख्यातवां भाग छोड़कर शेष सभी दो समय न्यून उत्कृष्ट स्थिति बाँधते होते हैं तथा दूसरे नवीन भी होते हैं। इस प्रकार पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण स्थितिस्थान पर्यन्त कहना चाहिये । ___पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण स्थितिस्थानों में के इस अन्तिम स्थितिस्थान में उत्कृष्ट स्थितिस्थान सम्बन्धी रसबंधाध्यवसाय की अनुकृष्टि समाप्त होती है। उसके बाद के स्थितिस्थान में समयन्यून उत्कृष्ट स्थिति सम्बन्धी रसबंधाध्यवसाय की अनुकृष्टि समाप्त होती है। इस प्रकार नीचे-नीचे अनुकृष्टि और समाप्ति वहाँ तक कहना चाहिये यावत् अठारह कोडाकोडी सागरोपम स्थिति शेष रहे । यानि बीसवीं कोडाकोडी के अन्तिम समय से आरम्भ कर अठारहवीं कोडाकोडी सागरोपम के अन्तिम समय पर्यन्त कहना चाहिये। ____ अठारहवीं कोडाकोडी सागरोपम की चरमस्थिति में जो रसबन्धाध्यवसाय होते हैं, वे सभी अठारहवीं कोडाकोडी सागरोपम की