Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधनकरण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ६५, ६६, ६७, ६८
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में जघन्य रस अनन्तगुण, उससे अनाक्रांत स्थानों में के पहले कंडक के दूसरे स्थान में उत्कृष्ट रस अनन्तगुण इस प्रकार एक स्थितिस्थान में जघन्य अनुभाग और एक स्थितिस्थान में उत्कृष्ट अनुभाग कहते हुए वहां तक जाना चाहिये यावत् उत्कृष्ट स्थितिस्थान में जघन्य अनुभाग अनन्तगृण हो। कंडकप्रमाण अंतिम स्थितिस्थानों में उत्कृष्ट अनुभाग अनुक्त है उसे भी अनुक्रम से उत्कृष्ट स्थितिस्थान पर्यन्त अनन्तगुण कहना चाहिये।
इस प्रकार से तिर्यंचद्विक की तीवमंदता जानना चाहिये । अब वसनामकर्म की तीव्रमंदता कहते हैं । त्रसनाम की तीव्रमंदता
सनामकर्म की तीव्रमंदता उसकी उत्कृष्ट स्थिति से प्रारम्भ कर नीचगोत्र के अनुसार कहना चाहिये। वह इस प्रकार कि त्रसनामकर्म की उत्कृष्ट स्थिति बांधने पर जघन्य अनुभागबंध अल्प उससे समयोन उत्कृष्ट स्थिति बांधने पर जघन्य अनुभाग अनन्तगुण, उससे दो समयन्यून उत्कृष्ट स्थिति बांधने पर जघन्य अनुभाग अनन्तगुण इस प्रकार नीचे-नीचे के स्थान में जघन्य अनुभाग अनन्तगुण वहां तक कहना चाहिये यावत् कंडक प्रमाण स्थितिस्थान जायें। उससे उत्कृष्ट स्थितिस्थान बांधने पर उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण, उससे कंडक के नीचे की पहली स्थिति में जघन्य अनुभाग अनन्तगुण, उससे समयोन उत्कृष्ट स्थिति में उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण, उससे कंडक की नीचे की दूसरी स्थिति में जघन्य अनुभाग अनन्तगुण, उससे दो समयन्यून उत्कृष्ट स्थितिस्थान में उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण, इस प्रकार एक स्थिति में जघन्य और एक स्थिति में उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण वहां तक कहना चाहिये यावत् अठारहवें कोड़ाकोड़ी सागरोपम की ऊपर की स्थिति-उत्कृष्ट स्थिति से नीचे उतरते और उस उत्कृष्ट स्थिति को अंतिम गिनते उन्नीसवीं कोडाकोडी सागरोपम की पहली स्थिति आये। अठारहवीं कोडाकोडी सागरोपम की ऊपर की एक कंडक प्रमाण