Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
View full book text
________________
बंधनकरण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ४७, ४८
१२१
अनन्तगुणे रसाणु होते हैं, ऐसी जघन्य वर्गणा से लेकर एक-एक अधिक रसाणुओं वाली अभव्यों से अनन्तगुण और सिद्धों के अनन्तवें भाग प्रमाण वर्गणाओं के समुदाय का एक स्पर्धक होता है और यह प्रथम स्पर्धक है।
इस प्रकार स्पर्धक प्ररूपणा का कथन जानना चाहिये ।
अब अन्तर प्ररूपणा का विवेचन करते हैं 'अओ परं नत्थि रूवहिया' अर्थात् पहले स्पर्धक की अन्तिम वर्गणा से एक-एक रसाविभाग से अधिक वाले कोई परमाणु नहीं होते हैं । परन्तु सर्वजीवों से अनन्तगुण अधिक रसाविभाग वाले परमाणु होते हैं। यानि अन्तिम वर्गणा में के किसी भी परमाणु के रसाणु की संख्या में सर्वजीवराशि से अनन्तगुण रसाणुओं की संख्या को मिलाने पर उनकी जितनी संख्या हो, उतने रसाणु वाले परमाणु होते हैं और उन समान रसाणुओं वाले परमाणुओं का समुदाय दूसरे स्पर्धक की पहली वर्गणा है। एक अधिक रसाणु वाले परमाणुओं के समूह की दूसरी वर्गणा, दो अधिक रसाणु वाले परमाणुओं के समूह की तीसरी वर्गणा, इस प्रकार एक-एक अधिक रसाणु वाले परमाणु के समूह की अभव्य से अनन्तगुण और सिद्धों के अनन्तवें भाग प्रमाण वर्गणायें होती हैं । उनका जो समुदाय वह दूसरा स्पर्धक है। ___ तदनन्तर पुनः दूसरे स्पर्धक की अन्तिम वर्गणा से एक-एक अधिक रसाणु वाले परमाणु नहीं होते हैं, परन्तु सर्वजीवों से अनन्तगुण रसाविभाग वाले परमाणु होते हैं । समान रसाणु वाला उनका जो समुदाय वह तीसरे स्पर्धक की पहली वर्गणा होती है। उससे एक अधिक रसाणु वाले परमाणुओं के समुदाय की दूसरी वर्गणा, दो अधिक रसाणु वाले परमाणुओं के समुदाय की तीसरी वर्गणा, इस प्रकार एकएक रसाणु अधिक परमाणु के समूह की अभव्यों से अनन्तगुण और सिद्धों के अनन्तवें भाग प्रमाण वर्गणायें होती हैं। उनका जो समुदाय वह तीसरा स्पर्धक है।