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बंधनकरण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ६५
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चाहिये । अब यह स्पष्ट करते हैं कि अनुभाग स्थान में किस क्रम से बांधने वालों की अपेक्षा जीव बढ़ते हैं। इसका निरूपण करने की दो विधायें हैं-१. अनन्तरोपनिधा और २. परंपरोपनिधा । दोनों उपनिधाओं की अपेक्षा उनका निरूपण इस प्रकार जानना चाहिए
जवमझमि बहवो विसेसहोणाउ उभयओ कमसो। गंतुमसंखा लोगा अद्धद्धा उभयओ जीवा ॥६५॥
शब्दार्थ-जवमझंमि—यवमध्य में, बहवो-बहुत, विसेसहीणाविशेषहीन, उ-और, उभयओ-दोनों बाजुओं से, कमसो-अनुक्रम से, गंतुमसंखालोगा-असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण स्थान जाने पर, अद्धद्धाअर्ध-अधं, उभयओ-दोनों ओर से, जीवा-जीव ।
गाथार्थ-यवमध्य में बहुत जीव हैं और अनुक्रम से दोनों बाजुओं में विशेषहीन, विशेषहीन हैं तथा दोनों ओर से असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण स्थान जाने पर जीव अर्ध-अर्ध होते हैं । विशेषार्थ--गाथा के पूर्वार्ध में अनन्तरोपनिधा के द्वारा और उत्तरार्ध में परंपरोपनिधा द्वारा अनुभागबंधस्थानों में जीवों का प्रमाण बतलाया है। इन दोनों में से पहले अनन्तरोपनिधा की दृष्टि का विचार करते हैं___ 'जवमझंमि' अर्थात् आठ समय काल वाले यवमध्य रूप रसबंध के स्थानों को बांधने वाले जीव बहुत हैं, और उसकी दोनों बाजुओं के स्थानों को बांधने वाले अनुक्रम से विशेषहीन-विशेषहीन हैं-'विसेसहीणाउ उभयओ कमसो' । इसका तात्पर्य यह हुआ कि सर्व जघन्य रसबंधस्थान को बांधने वाले जीव अल्प हैं, दूसरे स्थान को बांधने वाले जीव विशेषाधिक हैं, इस प्रकार विशेषाधिक-विशेषाधिक आठ समय काल वाले स्थान पर्यन्त जानना चाहिये। तत्पश्चात् सात समय काल वाले स्थान से लेकर दो समय काल वाले स्थान पर्यन्त विशेषहीनविशेषहीन कहना चाहिये । इसका अर्थ यह हुआ कि आठ समय काल वाले अंतिम स्थान से सात समय काल वाले पहले स्थान को बांधने