________________
१४२
पंचसंग्रह : ६
भाग देने पर जिसमें एक शेष रहे वह राशि पूर्न पुरुषों की परिभाषा के अनुसार कल्योज कहलाती है, जैसे कि तेरह । यहाँ विषम संख्या में कलि और त्रेता के साथ ओज शब्द और सम संख्या में द्वापर एवं कृत के साथ युग्म शब्द संयुक्त होगा। जिस राशि को चार से भाग देने पर दो शेष रहे वह राशि द्वापर युग्म है, जैसे चौदह । जिसमें तीन शेष रहे वह वेतौज यथा-पन्द्रह और चार से भाग देने पर कुछ भी शेष न रहे, वह संख्या कृतयुग्म राशि कहलाती है, यथासोलह । कहा भी है
चउदस दावर जुम्मा, तेरस कलि ओज तह य कडजुम्मा । सोलस ते ओजो खलु, पन्नरस्सेवं खु विन्नेया ॥ चौदह द्वापर युग्म राशि है, तेरह कल्योज, सोलह कृतयुग्म और पन्द्रह की त्रेतोज राशि जानना चाहिये।
यहाँ उपर्युक्त संज्ञा बताने का कारण यह है, कि रसबंध के स्थान, कंडक आदि किस संज्ञा वाले होते हैं । जैसा कि कहा है
__ कडजुम्मा अविभागा ठाणाणि य कंडगाणि अणुभागे। अर्थात् अनुभाग में यानि अनुभाग-रसबंध के अधिकार में अविभाग, स्थान और कंडक कृतयुग्म राशि रूप जानना चाहिये। - इस प्रकार से ओजोयुग्म प्ररूपणा का आशय जानना चाहिये । अब पर्यवसान प्ररूपणा करते हैं।
पर्यवसान प्ररूपणा–प्रथम षट्स्थानक में अन्तिम बार अनन्तगुणवृद्ध स्थान होने के अनन्तर अनन्तगुणवृद्ध स्थान नहीं होता है । क्योंकि वहाँ पहला षट्स्थान पूर्ण होता है, इसीलिये वह अन्तिम अनन्तगुणवृद्ध स्थान पहले षट्स्थानक का पर्यवसान है। तत्पश्चात पहले के क्रम से दूसरा षट्स्थान प्रारम्भ होता है। पहले षट्स्थान में जैसे आदि में अनन्तभागवृद्ध स्थान कंडक प्रमाण होते हैं, तत्पश्चात्