Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधनकरण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ५२,५३,५४
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छोड़कर आनंतभागवृद्ध स्थान की संख्या का विचार किया जाता है। और वे स्थान कंडकघन, दो कंडकवर्ग और एक कंडक प्रमाण होते हैं । अब त्र्यंतरित मार्गणा का कथन करते हैं।
त्र्यंतरित मार्गणा-असंख्यातगुणवृद्ध स्थान से पहले संख्यातगुण, संख्यातभाग और असंख्यातभाग इन तीन संख्या को छोड़कर अनंतभागवृद्ध स्थान की संख्या का पहले असंख्यातगुणवृद्ध स्थान से विचार करना त्र्यंतरित मार्गणा कहलाती है।
पहले असंख्यातगुणवृद्ध स्थान से नीचे अनन्तभागवृद्ध के स्थान कंडक-वर्ग-वर्ग, तीन कंडकघन, तीन कंडकवर्ग और एक कंडक प्रमाण होते हैं। प्रथम बार के अनन्तगुणवृद्ध स्थान के नीचे असंख्यातभागवृद्ध स्थान कंडकवर्ग-वर्ग, तीन कंडकघन, तीन कंडकवर्ग और एक कंडक प्रमाण होते हैं--'कंडस्स वग्गवग्गो घण वग्गा तिगुणिया कंडं'।
जिस प्रकार यह संख्या होती है अब इसको स्पष्ट करते हैं—पूर्व में यह बताया जा चुका है कि पहले संख्यातगुणवृद्ध स्थान के नीचे अनन्तभागवृद्ध स्थान कंडकघन, दो कंडकवर्ग और एक कंडक प्रमाण होते हैं। संख्यातगुणवृद्ध स्थान एक कंडक जितने होते हैं। इसलिये ऊपर की संख्या को कंडक से गुणा करने पर कंडकवर्ग-वर्ग आदि प्रमाण होता है । वह इस प्रकार-कंडकघन को कंडक से गुणा करने पर कंडकवर्ग-वर्ग होता है। क्योंकि असत्कल्पना से कंडकघन में चौंसठ संख्या और उसे चार से गुणा करने पर दो सौ छप्पन संख्या होती है और कंडकवर्ग-वर्ग भी उतना (१६४१६=२५६) होता है। दो कंडकवर्ग को कंडक से गुणा करने दो कंडकघन होते हैं और एक कंडक को कंडक से गुणा करने पर कंडकवर्ग होता है और अंतिम संख्यातगुणवृद्ध स्थान के बाद कंडकघन, दो कंडकवर्ग और एक कंडक प्रमाण स्थान होते हैं, यानि कुल संख्या कंडकवर्ग-वर्ग, तीन कंडकघन, तीन कंडकवर्ग और एक कंडक प्रमाण होती है।