________________
बंधनकरण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ४१
१०७ नाम का संख्यातगुणा है तथा शेष रही आतप, उद्योत, प्रशस्त-अप्रशस्त विहायोगति, सुस्वर-दुःस्वर इन प्रकृतियों का उत्कृष्ट पद में प्रदेश प्रमाण परस्पर समान तुल्य है।
निर्माण, उच्छ्वास, उपघात, पराघात, अगुरुलघु और तीर्थंकर नाम इन छह प्रकृतियों की विरोधी प्रकृतियों का अभाव होने से अल्प बहुत्व नहीं है । क्योंकि यह अल्पबहुत्व स्वजातीय अन्य प्रकृतियों की अपेक्षा अथवा प्रतिपक्षी प्रकृतियों जैसे सभग-दर्भग की अपेक्षा से विचार किया है। किन्तु निर्माण नाम कर्म आदि प्रकृतियाँ परस्पर स्वजातीय नहीं है, तथा न परस्पर विरुद्ध हैं । क्योंकि एक साथ इन का बंध हो सकता है।
गोत्र कर्म-नीच गोत्र का प्रदेश प्रमाण अल्प है, उससे उच्च गोत्र का विशेषाधिक है।
अन्तराय कर्म-दानान्तराय का प्रदेश प्रमाण अल्प है, उससे लाभान्तराय का विशेषाधिक है, उससे भोगान्तराय का विशेषाधिक है, उससे उपभोगान्तराय का विशेषाधिक है और उससे वीर्यान्तराय का विशेषाधिक प्रदेश प्रमाण है।
इस प्रकार से उत्कृष्ट पद में उत्तर प्रकृतियों का प्रदेश प्रमाण का अल्पबहुत्व जानना चाहिये। अब जघन्यपदभावी अल्पबहुत्व का कथन करते हैं। जघन्य पद में प्रदेशाग्र—अल्पबहुत्व
ज्ञानावरण, दर्शनावरण-जघन्य पद में इन दोनों की उत्तर प्रकृतियों के प्रदेशाग्र का अल्पबहुत्व जैसा उत्कृष्ट पद में कहा गया है, उसी क्रम से समझना चाहिये। ____मोहनीय कर्म-अप्रत्याख्यानावरण मान का प्रदेश प्रमाण अल्प है, उसकी अपेक्षा अनुक्रम से अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, माया और लोभ का विशेषाधिक है। उससे प्रत्याख्यानावरण मान का विशेषाधिक है, उससे प्रत्याख्यानावरण क्रोध, माया और लोभ का अनुक्रम से विशेषा