Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ६
इस प्रकार परमाणुवर्गणा से लेकर महास्कन्धवर्गणा पर्यन्त समस्त पौद्गलिक वर्गणाओं का स्वरूप जानना चाहिये ।
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यद्यपि यहाँ योग द्वारा जिन वर्गणाओं का जीव द्वारा ग्रहण होता है उन्हीं का स्वरूप कहना चाहिये था लेकिन प्रासंगिक होने से समस्त संभव पौद्गलिक वर्गणाओं के स्वरूप का प्रतिपादन कर दिया गया है । ये सभी वर्गणायें सार्थक नाम वाली हैं- 'सगुणनामाओ ।' जैसे कि एक-एक परमाणु रूप वर्गणा परमाणुवर्गणा है, दो परमाणु की पिंडरूप वर्गणा, द्विपरमाणुवर्गणा इत्यादि । अचित्त महास्कन्ध पर्यन्त की सभी वर्गणायें प्रदेशों की अपेक्षा अनुक्रम से बहु प्रदेशी है, लेकिन प्रत्येक वर्गणा अंगुल के असंख्यातवें भाग की अवगाहना वाली हैं । कर्म प्रकृति में कहा है- प्रत्येक वर्गणा की अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग की है । "
इस प्रकार से वर्गणाओं का स्वरूप जानना चाहिये ।' अब ग्रन्थकार आचार्य यह बताते हैं कि उन वर्गणाओं में कितने परमाणु होते हैं ।
वर्गणान्तर्वर्ती परमाणु प्रमाण
सिद्धातं सेणं अहव
अमव्वेहणंतगुणिएहिं ।
जुत्ता जहन्न जोग्गा ओरलाइणं भवे जेट्ठा ॥१७॥
शब्दार्थ - सिद्धाणंतसेणं - सिद्धों के अनन्तवें भाग, अहव - अथवा, अभ
तगुणिएहि अभव्यों से अनन्त गुणे परमाणुओं से, जुत्तायुक्त, जहन्नजोग्गा - जघन्य ग्रहणयोग्य वर्गणा, ओरलाइणं- औदारिक आदि की, भवे — होती हैं, जेट्ठा - उत्कृष्ट ।
गाथार्थ – सिद्धों के अनन्तवें भाग अथवा अभव्यों से अनन्तगुणे परमाणुत्रों से युक्त औदारिक आदि की जघन्य ग्रहणयोग्य
१ असंखभागंगुलवगाहो ।
२ वर्गणाओं सम्बन्धी विवरण एवं सुगमता से बोध कराने वाला प्रारूप परिशिष्ट में देखिये |