Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधनकरण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा २३
६६
हैं। परन्तु येक्रमण करने परख्यात लोकाकाश
में परमाणु आधे होते हैं। उसकी अपेक्षा पुनः असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण वर्गणाओं का अतिक्रमण करने पर प्राप्त वर्गणा में परमाणु अर्ध होते हैं। परन्तु ये अर्ध-अर्ध परमाणु किस हानि तक प्राप्त होते हैं ? इसको स्पष्ट करने के लिये आचार्य गाथा सूत्र कहते हैं
पढमहाणीए एवं बीयाए संखवग्गणा गंतु।
अद्धं उवरित्थाओ हाणीओ होंति जा जीए ॥२३॥ शब्दार्थ--पढमहाणीए-प्रथम हानि में, एवं इसी प्रकार, बीयाएदूसरी हानि में, संखवग्गणा--संख्याती वर्गणाओं के, गंतु-जाने पर, अद्धंअर्ध, उवरित्थाओ-ऊपर रही हुई वर्गणाओं में, हाणीओ-हानियां, होतिहोती हैं, जा-जो, जीए-जिसकी। ___ गाथार्थ-प्रथम हानि में इस प्रकार जानना चाहिये । द्वितीय हानि में संख्याती वर्गणाओं के जाने पर अर्धपरमाणु होते हैं । इसी प्रकार ऊपर रही हुई वर्गणाओं में (संख्याती वर्गणाओं को उलांघने के बाद हो, उसमें) अर्ध-अर्ध परमाणु होते हैं ।
विशेषार्थ---पढमहाणीए एवं' अर्थात् पहली असंख्यातभाग हानि में असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण वर्गणाओं के परे जो वर्गणा आती है उसमें अर्ध-अर्ध परमाणु होते हैं। तत्पश्चात् संख्यातभाग हानि में जो द्विगुण हानि होती है उस पहली वर्गणा से संख्याती वर्गणाओं के उलांघने के पश्चात् प्राप्त वर्गणा में अर्ध परमाणु होते हैं । तत्पश्चात् संख्यातभाग हानि में जो द्विगुणहानि होती है उस वर्गणा से संख्याती वर्गणाओं का अतिक्रमण करने के बाद जो वर्गणा आती है उसमें आधे पुद्गल होते हैं । वह इस प्रकार समझना चाहिये
संख्यातभाग हानि वाली पहली वर्गणा से संख्याती वर्गणाओं को उलांघने के पश्चात् जो वर्गणा आती हैं, उसमें असंख्यात भाग हानि वाली अंतिम वर्गणा में रहे हुए परमाणुओं की अपेक्षा पुद्गल परमाणु आधे होते हैं। उसके बाद पुनः संख्याती वर्गणाओं को उलांघने के बाद