Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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२. स्नेह प्रत्ययस्पर्धक की तदनन्तर की संख्यात भाग हीन |
३. स्नेहप्रत्ययस्पर्धक की तदनन्तर की संख्यातगुणहीन |
पंचसंग्रह : ६
अनन्त वर्गणायें
अनन्त वर्गणायें
४. स्नेहप्रत्ययस्पर्धक की तदनन्तर की अनन्त वर्गणायें असंख्यात - गुणहीन |
५. स्नेहप्रत्ययस्पर्धक की तदनन्तर की अनन्तवर्गणायें अनन्तगुणहीन ।
इस प्रकार से स्नेहप्रत्ययस्पर्धक की अनन्त वर्गणायें - १. असंख्यात भागहीन - विभाग, २. संख्यात भागहीन - विभाग, ३ . संख्यातगुणहीन - विभाग, ४. असंख्यातगुणहीन - विभाग, और ५. अनन्त गुणहीन - विभाग, इन पाँच विभागों में विभाजित हैं ।
इस प्रकार से स्नेहप्रत्ययस्पर्धक प्ररूपणा के संबंध में अनन्तरोपनिधा प्ररूपणा का मंतव्य जानना चाहिये । अब परंपरोपनिधा प्ररूपणा द्वारा विचार करते हैं
गंतुमसंखा लोगा अद्धद्धा पोग्गला भूय ||२२||
शब्दार्थ - गंतुमसंखा लोगा - असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण वर्गणाओं का उल्लंघन करने के बाद, अद्धद्धा-अर्ध- अर्ध, पोग्गला - पुद्गल परमाणु, भूय पुनः फिर
गाथार्थ - असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण वर्गणाओं का उल्लंघन करने के बाद प्राप्त होने वाली वर्गणा में अर्ध पुद्गल परमाणु होते हैं । इस प्रकार पुनः पुनः अर्ध- अर्ध जानना चाहिये ।
विशेषार्थ- परंपरोपनिधा से वर्गणाओं में प्राप्त पुद्गल परमाणुओं का प्रमाण बतलाते हुए निर्देश किया है कि प्रथम वर्गणा में जितने परमाणु हैं उनकी अपेक्षा असंख्यात लोकाकाशप्रदेश प्रमाण वर्गणाओं का अतिक्रमण करने के पश्चात् प्राप्त होने वाली वर्गणा