________________
पंचसंग्रह : ६ वेदन कराती है और जिसकी रस यह संज्ञा है, दोनों एक होना चाहिये।
परन्तु पुद्गलगत स्नेह और अनुभाग रूप रस दोनों एक नहीं हैं, भिन्न-भिन्न हैं। उन दोनों के पार्थक्य के कारण इस प्रकार हैं
कार्यभेद-कर्मपुद्गलों को जीव के साथ सम्बन्धित करना स्नेह का कार्य है और कर्म के स्वभावानुरूप तीवमंदादि शुभाशुभ रूप अनुभव कराना अनुभाग रूप रस का कार्य है। इस प्रकार के कार्य भेद से स्नेह और अनुभाग रूप रस भिन्न हैं।
कारणभेद-कर्मस्कन्ध गत स्नेह का कारण स्निग्ध स्पर्श रूप पुद्गल गुण है और अनुभाग रूप रस के कारण जीव के काषायिक अध्यवसाय हैं। इन प्रकार कारणभेद से स्नेह और रस भिन्न-भिन्न
पर्यायभेद-स्नेह स्निग्ध स्पर्श की पर्याय है और रस काषायिक अध्यवसायों से संयुक्त कर्मदलिक की पर्याय है।
वस्तुभेद-स्नेह कर्माणुओं में विद्यमान स्निग्ध स्पर्श है और अनुभाग रस तदनुरूप अनुभव की तीव्रता-मंदता है ।
उत्पत्तिभेद-स्नेहाविभाग कार्मणवर्गणा के पुद्गलों की कर्म रूप से परिणत होने के पूर्व से भी उत्पन्न हुए होते हैं और अनुभाग रूप रस की उत्पत्ति कर्म परिणाम से परिणत होने के समय ही कार्मणवर्गणा के पुद्गलों में उत्पन्न होती है । अर्थात् जीव के साथ सम्बद्ध होने के समय ही अनुभाग शक्ति---रस की उत्पत्ति होती है।
प्ररूपणाभेद-स्नेह की प्ररूपणा स्नेहप्रत्यय, नामप्रत्यय और प्रयोगप्रत्यय रूप में की जाती है और अनुभाग रूप रस की प्ररूपणा शुभ-अशुभ, घाति-अघाति, एकस्थानक, द्विस्थानक आदि के रूप में।.. ___ सारांश यह है कि उपर्युक्त हेतु स्नेह और अनुभाग रूप रस की भिन्नता के निमित्त हैं। अतएव यहाँ रस शब्द का प्रयोग किये जाने