Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ६
व्यवहार किया जाता है। ये परमाणु रूप वर्गणायें अनन्त हैं और संपूर्ण लोक में व्याप्त हैं। ____ दो परमाणुओं के समुदाय रूप द्विपरमाणुस्कन्ध वर्गणा कहलाती हैं। वे भी अनन्त हैं और संपूर्ण लोक में व्याप्त हैं। तीन परमाणु का पिंड रूप त्रिपरमाणु स्कन्ध वर्गणा कहलाती हैं। इसी प्रकार चतु:परमाणुस्कन्ध वर्गणा का स्वरूप जानना चाहिये। इस तरह एक-एक बढ़ते हुए संख्यात परमाणु की बनी हुई संख्यात परमाणुस्कन्ध वर्गणा, असंख्यात परमाणु की समुदाय रूप असंख्यात परमाणुस्कन्ध वर्गणा और अनन्त परमाणुओं की पिंड रूप एक-एक बढ़ते हुए परमाणुओं की अनन्त वर्गणायें होती हैं।
ये सभी प्रत्येक वर्गणायें स्वजाति की अपेक्षा अनन्त हैं और संपूर्ण लोक में व्याप्त हैं। ___ मूल से लेकर अर्थात् परमाणुवर्गणा से लेकर इन सभी वर्गणाओं में परमाणु अल्प होने से उनका स्थूल परिणमन होता है, जिससे वे जीव के ग्रहण योग्य नहीं होती हैं तथा अनन्तानन्त परमाणु की समुदाय रूप अनन्तानन्त परमाणुओं से बनी हुई भी वर्गणायें ग्रहण योग्य नहीं होती हैं। किन्तु जिन वर्गणाओं में अभव्य से अनन्तगुण और सिद्धों के अनन्तवें भाग प्रमाण परमाणु होते हैं, वे वर्गणायें जीव द्वारा ग्रहण योग्य होती हैं।
जीव द्वारा ग्रहणप्रायोग्य वर्गणायें इस प्रकार हैं
१. औदारिकशरीर वर्गणा, २. वैक्रियशरीर वर्गणा, ३. आहारकशरीर वर्गणा, ४. तेजस्शरीर वर्गणा, ५. भाषावर्गणा, ६. श्वासोच्छ्वासवर्गणा, ७. मनोवर्गणा और ८. कार्मणवर्गणा । औदारिकशरीर वर्गणा
जीव ग्रहणप्रायोग्य पूर्वोक्त आठ वर्गणाओं में पहली वर्गणा का नाम औदारिकशरीर वर्गणा है। जीवग्राह्य वर्गणाओं के क्रम में