Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ६ जो वर्गणायें रही हुई हैं उनको प्रत्येकशरीरी वर्गणा कहते हैं। इन वर्गणाओं को जीव किसी कर्म के उदय से ग्रहण नहीं करता है, किन्तु विश्रसा परिणाम से ही औदारिक आदि पांच शरीर नामकर्म के पुद्गलों का अवलंबन लेकर रही हुई हैं। इस बात को शतक चूणि में भी कहा है
पत्तेयवग्गणा इह पत्तेयाणं तु उरलमाइणं । पंचण्हसरीराणं तणुकम्म पएसगा जेइ ॥१॥ तत्थेक्कक्क पएसे वीसस परिणाम उवचिया होति ।
सव्वजियणंतगुणा पत्तैया वग्गणा ताओ ॥२॥ प्रत्येकनामकर्म के उदय वाले जीवों के औदारिक आदि पांच शरीर नामकर्म के जो कर्माणु सत्ता में रहे हुए हैं, उनके एकएक प्रदेश पर सर्व जीवों की अपेक्षा अनन्त गुण परमाणु वाली जो वर्गणायें विश्रसा परिणाम द्वारा उपचित हुई हैं-अवलंबन लेकर रही हुई हैं, वे प्रत्येकशरीरी वर्गणा कहलाती हैं। ध्रुवशून्यवर्गणा
प्रत्येकशरीरी उत्कृष्ट वर्गणा से एक अधिक परमाणु वाली द्वितीय जघन्य ध्र वशून्यवर्गणा है। दो अधिक परमाणु वाली दूसरी ध्र वशून्यवर्गणा है । इस प्रकार एक-एक परमाणु की वृद्धि करते हुए वहां तक कहना चाहिये कि यावत् उसकी उत्कृष्ट वर्गणा हो। जघन्य वर्गणा से उत्कृष्ट वर्गणा असंख्यात गुणी है। जघन्य वर्गणा की परमाणु संख्या को असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण प्रदेशों द्वारा गुणा करने पर प्राप्त संख्या जितने प्रदेश उत्कृष्ट वर्गणा में होते हैं । यह द्वितीय ध्र वशून्यवर्गणा है और इस ध्रु वशून्यवर्गणा का अर्थ पूर्व में बताई गई पहली ध्र वशून्यवर्गणानुरूप समझ लेना चाहिये। बादरनिगोदवर्गणा । साधारणनामकर्म के उदय वाले बादर एकेन्द्रिय जीवों के सत्ता में रहे हुए औदारिक, तैजस और कार्मण नामकर्म के पुद्गल पर