Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधनकरण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १२
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२२. पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यात गुणा है। उससे- २३. पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यात गुणा है। उससे
२४. पर्याप्त द्वीन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है। उससे___२५. पर्याप्त त्रीन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है। उससे
२६. पर्याप्त चतुरिन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है। उससे
२७. पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है ।
इस प्रकार लब्धि-अपर्याप्त सूक्ष्म निगोदिया जीव से लेकर पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्यन्त के जीवों के जघन्य और उत्कृष्ट योग का अल्प-बहुत्व जानना चाहिये। किन्तु संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीव, देव, मनुष्य, तिर्यंच और नारक के भेद से चार प्रकार के हैं। इनके उत्कृष्ट योग के अल्प-बहुत्व का निर्देश इस प्रकार जानना चाहिये
२८. पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय के उत्कृष्ट योग से अनुत्तरवासी देवों का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है। उससे
२६. ग्रैवेयक देवों का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है । उससे
३०. भोगभूमिज-अकर्मभूमिज तिर्यंच तथा मनुष्यों का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है । उससे
३१. आहारक शरीरी मनुष्य का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है। उससे
३२. शेष देव, नारक, तिर्यंच और मनुष्यों का योग असंख्यात गुणा है।
इस प्रकार से योग संबंधी समस्त संसारी जीवों के योग का अल्पबहुत्व जानना चाहिये । यहाँ असंख्यात गुण में ग्रहण की गई गुणक