Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधनकरण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १०
समय बढ़ता है, किसी समय घटता है और किसी समय वही रहता है।
ऐसी स्थिति में जो वृद्धि और हानि होती है वह चार प्रकार की है—१. असंख्यातभाग वृद्धि, २. संख्यातभाग वृद्धि, ३. संख्यातगुण वृद्धि और ४. असंख्यातगुण वृद्धि । ___इसी तरह हानि के भी चार प्रकार हैं-१. असंख्यातभाग हानि २. संख्यातभाग हानि ३. संख्यातगुण हानि और ४. असंख्यातगुण हानि । ___इन चारों प्रकार की वृद्धि और हानि का स्वरूप इस प्रकार हैविवक्षित किसी एक समय में जो योगस्थान होता है, उससे आगे के समय में क्वचित् असंख्यात भागाधिक वाला योगस्थान होता है यानि विवक्षित समय के वीर्यव्यापार से आगे के समय में असंख्यात भाग अधिक वीर्यव्यापार की वृद्धि वाला योगस्थान होता है। क्वचित् संख्यात भागाधिक वृद्धि वाला योगस्थान होता है, क्वचित् संख्यात-गुणाधिक वृद्धि वाला योगस्थान होता है और क्वचित् असंख्यात गुणाधिक वीर्यव्यापार वाला योगस्थान होता है।
वृद्धि के अनुरूप हानियां भी चार तरह की हैं-विवक्षित किसी एक समय में जिस योगस्थान पर आत्मा है, उससे आगे के समय में क्वचित् असंख्यातभाग हीन वीर्यव्यापार वाले योगस्थान पर आत्मा जाती है। किसी समय संख्यातभागहीन योगस्थान पर, किसी समय संख्यातगुणहीन यानि विवक्षित योगस्थान की अपेक्षा संख्यात गुणहीन वीर्यव्यापर वाला जो योगस्थान है उस योगस्थान पर आत्मा जाती है और इसी प्रकार किसी समय असंख्यातगुणहीन योगस्थान पर आत्मा जाती है।
इस तरह वीर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशम की अल्पाधिकता की अपेक्षा से योगस्थान में हानि, वृद्धि होती रहती है।