________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
आकास
खेला जाने वाला चौसर या चौपड़ का खेल, केवल मुख से मोहरों को खेलपट्टी पर चलाने की बात कहते हुए खेला जा रहा जुए का खेल आकासन्ति अनुपददसपदेसु विय आकासेयेव कीळनं दी. नि. अट्ठ. 1.78; आकासेपीति अद्वपददसपदेसु विय आकासेयेव कीळन्ति पारा, अड. 2.185 आकासेयेव कीळन्तीति 'अयं सारी असुकपदं गया नीता, अयं असुकपदन्ति केवलं मुखेनेव वदन्ता आकासेयेव जूतं कीळन्ति, सारत्थ. टी. 2.330. आकास' पु.. [आकर्ष] इच्छा, लोभ, आसक्ति, (रूप आदि की ओर मन को खींचने वाली) तृष्णा आकारां न सितो सिया, सु. नि. 950; तण्हा हि रूपादीनं आकासनतो आकासो ति दुच्चति, सु. नि. अड्ड. 2.258. आकासकथा स्त्री० [आकाशकथा]. आकाश-विषयक विवेचन, आकाश के सम्बन्ध में विवाद - इदानि आकासकथा नाम होति प. प. अ. 189. आकासकसिण पु. / नपुं, [बौ. सं. आकाशकृत्स्न] ध्यानप्रक्रिया में चित्त को एकाग्र करने हेतु निर्दिष्ट कर्मस्थानों में से एक, चित्त के आलम्बन के रूप में आकाश का एक सीमित अंश या खण्ड, परिच्छिन्न आकाश तथा इसे आलम्बन बनाकर किया जा रहा ध्यान यञ्च आकासकसिणं पञ्च विज्ञाणकसिणं, अयं विपस्सना, नेत्ति. 74; आकासकसिणं भावेति, अ. नि. 1 (1).56; आकासकसिणन्ति परिच्छेदाकासो, तदारम्मणञ्च झानं पटि म. अ. 1.99; आकासकसिणन्ति पन कसिपुण्घाटिममाकासम्प तं आरम्भणं कृत्वा पवतक्खन्धापि भित्तिच्छिदादीसु अञ्ञतरस्मिं गहेतब्बनिमित्तपरिच्छेदाकासपि तं आरम्भणं कत्वा उप्पन्न चतुक्कपञ्चकज्ज्ञानम्पि बुच्चति, ध, स. अट्ट, 231 समापत्ति स्त्री. तत्पु स. [बौ. सं. आकाशकृत्स्नसमापत्ति ], आकाश-कसिण को आलम्बन बनाने वाले चतुर्थ ध्यान की प्राप्ति पकतिया आकासकसिणसमापत्तिया लाभी होति, पटि. म. 378; आकासकसिणसमापत्तियाति परिच्छेदाकासकसिणे उप्पादिताय चतुत्थज्झानसमापत्तिया पटि म अड. 2.250: स. उ. प. के रूप में परिच्छेदा, के अन्त. द्रष्ट.. आकासगङ्गा स्त्री० [आकाशगङ्गा], क. देव-नदी, स्वर्ग से बहने वाली एक नदी, ख. हिमालय के अनोतत्त नामक सरोवर से दक्षिण की ओर बहने वाली नदी, ग. आकाश में बहते हुए पुनः पृथ्वी पर उतर कर बहने वाली गङ्गा नदी
मन्दाकिनी तथाकासगङ्गा सुरनदीप्पथ, अभि. प. 27; आकासेन सद्वि योजनानि गतट्टाने "आकासगङ्गा "ति वुच्चति,
-
9
आकासगति
सु.नि. अट्ठ. 2.146 - यष. वि., ए. व. सतततिन्तके ति धुवतिन्तके... सहियोजनिकाय आकासगङ्गाय पतितद्वाने म. वं. टी. 476(ना.): ङ्गतो प. वि., ए. व. आकासगङ्गतो भस्समानं उदकं विय निरन्तरं कथं पवतेति म. नि. अट्ठ. ( मू.प.) 1 (2).151; द्वि. वि. ए. व. तदा हि भगवा आकासगङ्गं ओतारेन्तो विय पथवोजं आकड्डून्तो विय... दी. नि. अड्ड. 3.141 गतिसोभा स्त्री. तत्पु स० [आकाशगङ्गागतिशोभा], आकाश से उतर रही गङ्गा के प्रवाह की शोभा मं द्वि. वि. ए. व. - आकासगङ्गागतिसोभ अभिभवमाना.... म. नि. अट्ट. (उप. प.) 3.158 पतितद्वान नपुं. [आकाशगङ्गापतनस्थान ], गङ्गा नदी के आकाश से धरती पर गिरने का स्थान ने सप्त. वि. ए. व. आकासगङ्गापतितद्वाने सतततिन्तके म. वं. 29.5; अनोतत्तदहतो निक्खन्ताय सहियोजनिकाय आकासगङ्गाय पतितद्वाने, म. वं० टी० 476 (ना.) ; 2. स्त्री०, व्य. सं. श्रीलङ्का के राजा पराक्रमबाहु (प्रथम) द्वारा बारहवीं सदी में बनवाई गई एक नहर या मातिका आकासगङ्गानामाय मातिकाय महन्तिया, चू. के. 79.25. आकासगत 1. त्रि. [आकाशगत], आकाश की ओर गया। हुआ, आकाश में स्थित, अत्यधिक फैला हुआ या खुला हुआ तं नपुं. प्र. वि. ए. व. आकासह नाम भण्ड आकासगत होति. पारा 55 ता पु. प्र. वि. ब. व. - नपुं०,
.2
"
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-
आकासट्टा आकासगता, अप. अट्ठ. 1.112;
द्वि. वि. ए. व. हत्थेन पन गहेत्वा अन्तोवत्थुस्मिम्पि आकासगत करोन्तस्स पाराजिकमेव, पारा. अड. 1.259 -
For Private and Personal Use Only
-
-
-
ते
व.
पु द्वि. वि., ब.व. चत्तारो पादे आकासगते कत्वा म. नि. अड. ( मू.प.) 1 ( 2 ) 36 - तेसु सप्त वि. ब. चतूसु पादेसु आकासगतेसु गमनं पछिज्जति म. नि. अड्ड. ( मू.प.) 1(2):37 - विञ्ञाण नपुं, कर्म. स. [आकाशगतविज्ञान] आकाश की अनन्तता को अपना आलम्बन बनाने वाला अरूपध्यान का चित्त आकासगतविज्ञाणं दुतियारूप्यचक्ना अभि. अ. 1017; 2. नपुं, आकाश, आकाश या अन्तरिक्ष में अन्तर्भूत कोई भी तत्त्व - यो आकासो आकासगतं अघं अघगतं, ध. स. 637; आकासोव आकासगतं, खेळगतादि विय, आकासोति वा गतन्ति 'आकासगतं, ध. स. अट्ठ. 358.
आकासगति स्त्री० [आकाशगति], आकाश में गमन, आसमान
जहिंसु आकासगतिं
में उड़ान तिं द्वि. वि. ए. व. - विहडमा दाठा. 1.45 (रो.).
-