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अध्याय १ -- पृष्ठभूमि वाजपेयी ने सं० १६०२ में 'हम्मीर हठ' और लिखा था। यह भी एक सुन्दर वीर काव्य है । इन कवियों की रचनाओं से दो तीन बातें हमारे सामने आती हैं
१. मत्स्य प्रदेश में वोर काव्यों की परम्परा प्रचलित हो चुकी थी। 'विजयपाल रासो' तथा 'हम्मीर रासो' जो वीर गाथा काल के शीर्ष हैं यहीं लिखे गए। यह परम्परा बराबर चलती रही। सूदन के 'सुजान-चरित्र,' तथा जाचीक जोवन के 'प्रताप रासो' का प्रणयन इसी पद्धति का अनुगमन था। कुछ समय उपरान्त 'यमन-विध्वंस-प्रकास'', 'महल-रासो' प्रादि ग्रन्थ
भी लिखे गए।
२. धर्म की ओर प्रवृत्ति रही । कृष्ण और राम भक्ति तो थी ही क्योंकि यह प्रान्त यदुवंशी तथा सूर्यवंशी राजाओं के द्वारा शासित था। यदुवंशभूषण 'कृष्ण' और सूर्यवंशावतंस 'राम' विषयक कविता का प्रचार क्यों न होता ? निर्गुण भक्ति के लिए भी कुछ क्षेत्र बन गया था
और राज्य के मेव तथा हिन्दुओं में स्नेहयुक्त सम्मिलित जीवन बिताने का प्रयास किया जाने लगा था।
३. उस समय काव्य की भाषा राजस्थानी से प्रभावित थी। ऐसा प्रतीत होता है कि इन लोगों ने जनवाणो का उपयोग किया। लालदास' को तो ऐसा करना आवश्यक ही था और अन्य कवि राजस्थान के थे ही। अतएव यहीं की बोली ली गई । भाषा-विषयक यह परम्परा आगे नहीं चल पाई । काव्य में ब्रजभाषा की माधुरी पर सब कोई मुग्ध थे, फिर मत्स्य ही पीछे क्यों रहता और विशेषकर जब मत्स्य की काव्य-धारा उत्तर-प्रदेश से आये पंडितों द्वारा प्रवाहित की गई थी। राजस्थानी के दर्शन कहीं-कहीं हो हो पाते हैं। उस समय की एक विशेषता और थी, मसलमानों की बातें मिश्रित खड़ी बोली उर्दू में कराई जाती थीं। जैसे
इस वास्ते तुमसे अरज बहु भांति कीजत है बली।
अब हाथ उस पर रक्खिए तब लेह जंग फते अली ।। इस समय के उपलब्ध साहित्य पर दृष्टिपात करने से जन-जीवन संबंधी कुछ बातें और मिलती हैं । मत्स्य प्रदेश में सगुणोपासना का जोर था-राम और
१ दत्तकवि-उग्र काव्यकार । २ जयदेव, अलवर। ३ लालदास ने साधारण कोटि के लोगों को जन-वाणी में उपदेश दिया ।
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