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अध्याय १ - पृष्ठभूमि अनुसार थी। जयपुर महाराज की राजभवन लाइब्रेरी का अनुसंधान करने पर इस काल से पहले का काफी साहित्य मिला, किन्तु उसमें यह पता लगाना कठिन है कि मत्स्य प्रान्त में कितना काम किया गया होगा । निश्चित रूप से इस प्रदेश से संबंधित कुछ नाम सामने आते हैं, जैसे
(१) लालदास-इनका जन्म १५९७ वि० में हुअा था। इनका मत लालदासी कबीरपंथ से मिलता जुलता है। ये दादू-नानक के समकालीन थे। इनका जन्म मेव जाति में हुआ था, किन्तु यह हिन्दू-मुस्लिम एकता के कट्टर पक्ष-पाती थे। इनका संग्रह 'लालदास की बाणी' है। भगवान का संकेत राम, साहब, धनी आदि अनेक नामों से किया है
डोरी पकड़ो राम की, नित उठ जपिये राम ।
कहा मोहला जगत सू , पड़े धनी सूं काम ।। यह एक पहुँचे हुए महात्मा थे और इनके मानने वाले इनको बहत ऊँचा मानते हैं। इनके नाम से शेरपुर में अब तक मेला लगता है। कहा जाता है, बादशाह अकबर इनका दर्शन करने के लिए इनके स्थान धौली दूब में स्वयं ही आये थे। इनका मृत्यु-संवत् १७०५ बताया जाता है। लालदासजी को हम सरलता से संत कवियों की कोटि में रख सकते हैं
कहे लाल साँई को प्यारो, श्रवण सुनो इक सबद हमारो। हिन्दू तुरक एकसौ सूझै, साहब घट सब एकहि सूझै ।। कहे लाल साँई को प्यारो, साहब एक दणावण हारो।
हिन्दू तुरक को एकहि साहब, राह बणाई दोय अजायब' ।। लालदासी मत अाज भी प्रचलित है। ये लोग लालदास के अतिरिक्त और किसी को नहीं मानते। किसो शुभ अवसर के होने पर 'लालदास का रोट' करते हैं । लालदास की मृत्यु नगला जिला भरतपुर में हुई। असाढ़ शुक्ला १५ को शेरपुर जिला अलवर में इनके नाम से हर साल मेला लगता है।
(२) नलसिंह-इनका सम्बन्ध करौली राज्य से था और इन्हें वहां के राजाओं का प्राश्रय प्राप्त था। विजयपाल बयाना के प्रसिद्ध राजा थे
१ 'अरावली पत्रिका', जिल्द तीन, संख्या १-३। अलवर की इस साहित्यिक पत्रिका का
सुरुचिपूर्ण संपादन होता था-बहुत कुछ अनुसंधित तथा विवरणात्मक साहित्यिक सामग्री भी रहती थी। किन्हीं कारणों से यह पत्रिका केवल कुछ समय ही चल सकी।
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