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मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन
है, वह भी बहुत साफ और चलती हुई
__'इस वास्ते तुम से अरज बहु भांति कीजत है बली।
अब हाथ उन पर रक्खिये तब लेइ जंग फतेअली ॥' खड़ी बोली और व्रजभाषा का साथ-साथ प्रयोग हो कुछ आलोचकों की भाषा की गड़बड़ो के रूप में अखर सकता है ।
पंडित शुकदेव बिहारी मिश्र ने पटना विश्वविद्यालय में 'हिन्दी साहित्य का इतिहास पर प्रभाव' नामक एक भाषणमाला दी थी जो पुस्तक रूप में प्रकाशित है । इसमें सूदनकृत 'सुजानचरित्र' द्वारा प्रस्तुत जो १८०२ से १८१० वि० तक का विवरण है, उस पर विस्तारपूर्वक विचार किया है। अपने भाषण के उपसंहार में मिश्रजी का कहना है
'सूदन का वर्णन १७४५–१७५३ ई० का है और है बड़ा सजीव । इनका साहित्य बुरा नहीं है, परन्तु ग्रन्थ का ऐतिहासिक मूल्य बहुत बढ़िया है, क्योंकि कवि ने उस काल का सजीव चित्र सामने उपस्थित किया है। १७३६ में नादिरशाह ने दिल्ली पर अधिकार कर के लूट एवं कत्लेआम किया था। बादशाह दिल्ली का बल १७१७ से ही मृतप्राय था, और नादिरशाह के आक्रमण से और भी ध्वस्त हो गया। प्लासी का यूद्ध १७५७ में हवा और पानीपत का तीसरा युद्ध १७६१ में। अतएव उस काल तक अंग्रेजों की शवित नहीं चढ़ी थी, न महाराष्ट्रों की घटी थी। ऐसे समय का सजीव चित्र उपस्थित करने से सूदन कवि धन्यवादार्थ हैं । सूदन तथा ऐसे अन्य कवियों ने हिन्दू शूरवीरों का सजीव वर्णन कर के उस काल के हिन्दू समाज में सामरिक शक्ति एंव उत्साहवर्द्धन किया। इस प्रकार भारतीय इतिहास के एक अंग का इन लोगों ने न केवल चित्र खींचा, वरन् हिन्दू शक्ति अथच् उत्साहवर्द्धन द्वारा इतिहास पर भी भारी प्रभाव डाला।'
यह पुस्तक पूर्ण नहीं है । हो सकता है सूदन का शरीर न रहा हो, अथवा वे भरतपुर को छोड़ कर कहीं अन्यत्र चले गए हों। पुस्तक अवश्य ही अधूरी रह गई । इस पुस्तक में निम्नलिखित प्रकरण हैं
१. असदखान हतनो नाम प्रथम जंग । २. मंगलडूगरी-युद्ध-विजय नाम द्वितीय जंग । ३. सलावतखां समर विजय । ४. पठान युद्ध उभय वर्णन । ५. अन्य युद्ध । ६. घासहरो विजय । ७. दिल्लो विध्वंसिनो नाम । ८. यह जंग अधूरी रह गई है।
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