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परिशिष्ट ३
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सुकवि खुमान मोद उनके उजोर वीर , सज के समूह है रखैया बृज-देश के। कृष्ण कुल-मंडन अरनि दल-दण्डन ये,
हाथी दे नहात है महोप मदनेश के ॥ कविता इनकी वंश परंपरागत सम्पत्ति है। इनके पुत्र जीवनसिंह जी महाराज भंवरपाल के दरबार में कविता करते थे और उनके पुत्र कृष्णकरजी भी कवि रहे। जीवनसिंह जी का एक कवित्त देखिए
उदित उमंगी महाराज श्री अमरपाल , करण करोली में प्रगट दरसावे जू। हाथी देत हरषि हजारन कविन्द्रन कू, बाजन के वृन्दन कू बांटत ही पावै जू । जीवन अनेकन कू बकसे इनाम भारी , ग्रामन की बकस विशेष चित्त लावै जू । लावे नहीं द्वार प्रावे संपति कुबेरहू की , पावै जो सुमेर ताहि तुरत लुटावै जू ।
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