Book Title: Matsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Author(s): Motilal Gupt
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 311
________________ २६२ ] मत्स्य प्रदेश को हिन्दी साहित्य को देन तुम प्रचार जानो नहीं, जाति और कुल और । गऊ चरावत फिरत हौ, तुम दानी कित ठौर ।। कहें ब्रज नागरी। हम दानी हैं प्रादि हिं अपनी मन मान्यौं । बलि संकल्प्यौ मोहि बांधि पाताल पठान्यौं ।। राम हुए छत्री हते, बसुधा लई छिनाय । फिर विप्रन कुं हम दई, मोते कहूं न जाय ।। सुनो ब्रज नागरी। जवाहरसिंह जी के प्रति-- नृपति जवाहर तुम्हारी हलदौर सुनि , बैरिन के बलगनि फैलत फिराके सी॥ जिनकी नवेली अलबेली बन कलिन में , बेली वेली रोवत अकेली सचि राके सी॥ भूलनि भरोसो भयरानी भयातुर सी , झटक झटक भेटती 'भूधर' भिराके सी ॥ चंद सी चमक चारु चपलासी चांदनी सी, चंपक कली सो चामीकर सी चिराके सी॥ ७. खुमानसिंह __ ये नल्लवंशी सिरोहिया राव करौली के अच्छे कवि हुए हैं। महाराज मदनपाल ने इनको उमेदपुरा गांव और हाथी दे कर करौली के सब गांवों में पीढी दर पीढी चन्दा चालू कर दिया था, और भट्ट, चारण आदि की विदा का दानाध्यक्ष भी बना दिया था जिसमें महाराज से बिना पूछे १००) तक विदा देने का इनका अधिकार था। मदनपाल जी के सम्बन्ध में लिखते हैं-- १ तिलक विज को निरभ को नव तेज पुंज , जवर जिल्है को जोट जाहर अनीप को। क्षत्रिन को क्षेत्र है नक्षत्रपति जू को वंश , जगत प्रशंस सुख सजन समीप को। करण उदार देवतरू सो पुनीत सार , उम्मर दराज सजि साहस प्रदीप को। चन्दन सो चन्द्र सो चहूंघा चार चन्द्रिका सो, दीप दीप छायो यश मदन महीप को। २ कल्पतरु कज्ज से सकल करणी के कोष , प्रभू कौं प्रमाणिक प्रचण्ड बलवेश के , भजन दरिद्र गढ गञ्जन गनीमनके , मालिक मलूक जंग जालिम हमेश के। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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