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मत्स्य प्रदेश को हिन्दी साहित्य को देन रामसिंह जी की पुत्री पर लिखा एक छंद देखिए
बूंदीनाथ प्रबल प्रतापी रामसिंह जू की , तनया सुशील सनी परदुख हारी है। पति सरदारसिंह परम प्रवीन पाये , गुन रिझवार तब पूरे हितकारी हैं। 'चन्द्रकला' सकल कलान में निपुन पाप , मति माहि शारदा सी नीकै निरधारी है। भाग अहिबात तेरौ सदा ही अचल रहो ,
जो लौं शिव मस्तक पै गंगा सुखकारी है। इनका जन्म सं० १९२३ में हुआ था। इनकी स्मरणशक्ति बड़ी तीव्र थी। हिन्दी के 'रसिकमित्र', 'काव्यसुधाकर' प्रादि पत्रों में इनकी कविताएं छपती थीं । इनकी भाषा सालंकार, सरल तथा व्यवस्थित है । कला की दृष्टि से इनकी कविता बहुत श्रेष्ठ है । ५. कृष्णदास
कृष्णदास जी की लिखी दो पुस्तकें मिलीं-१ रसविनोद और २ भक्ततरंगिनी (स्वामिनी जी का प्रथम मिलाप)। इन कविजी का कविताकाल भरतपुर के महाराज जसवंतसिंह जी का शासनकाल है। इनका निवासस्थान नगर था। भरतपुर के एक पंडित फतेहसिंह के अधिकार में उक्त दोनों पुस्तकों को देखा था।
अनेक कवियों ने 'रसविनोद' नाम से काव्यग्रंथ लिखे । कृष्णदास जी के इस ग्रन्थ का निर्माण काल इस प्रकार है
एक ब्रह्म नत्र भक्नि, बीस भक्त जल भेदवत् ।
सप्त जो ऋषि की शक्ति, ईहि जाने संमत यही ॥ समय देने की यह बड़ी ही कूट प्रणाली है किन्तु कवि ने स्वयं ही एक स्थान पर १६२७ लिखा है । पुस्तक में चार पाद हैं
१. नवरस वर्णन, २ नायक-नायिका भेद वर्णन, ३ दूतकादि वर्णन, ४ संचार प्रादि वर्णन । पुस्तक की पत्र संख्या केवल ३० है । पुस्तक के अंत में लिखा है--
'इति श्री कृष्णदास कृत ग्रन्थ रसविनोद संचारी वरणन नाम चतुर्थ पाद ।। ४ ।। संपूर्णम् । शुभ मंगल ।'
१ झिलमिलात तन ज्योति, द्वित वरणत रमणीयता।
लखि अनदेखी होति, मृदुता कोमल अंग वर ।। २ कुंद कली बीनन चली, साथ अली परभात ।
जहां छबीली पग धरत, कनक भूमि दरसात ॥ ३ रूप अनूपम राधिका, भूषन भूषन अंग ।
उमा रमा प्रमदा शची, लाजत तीय अनंग ।।
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