Book Title: Matsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Author(s): Motilal Gupt
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 310
________________ परिशिष्ट ३ [ २६१ दूसरा ग्रन्थ 'भक्त तरंगिनी' है जिसके साथ 'श्री स्वामिनी जी का प्रथम मिलाप' भी सम्मिलित है। इस पुस्तक में बल्लभ और विट्ठल के गुणगान उपरान्त कथा अथवा ग्रन्थ का प्रारम्भ होता है। इसमें सन्देह नहीं कि कवि बल्लभकुली था। स्वामिनी जी का मिलन 'राधा-कृष्ण' का मिलन है। श्री बल्लभ बिट्ठल कमल, पदरज रस मकरंद । सरस लुभानि भृग मन, प्रिय-प्रिया बृजचंद ।। इस पुस्तक के माजिन में अनेक टिप्पणियां भी लिखी हुई हैं। कविता बहुत ही सुन्दर है रमण अकेले नाहिं हरि, पत पत्नि भये पाप । सो श्री राधा कृष्ण को, वरणौं प्रथम मिलाप ।। राधा का वर्णन सारी नील लसी तन गोरें। दामिनी नील जलद चित चौरें। चरणन बजनी पायल गाजी। काम विजय दुंदुभि जनु बाजी ।। ६. दान कवि १६वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में इनकी स्थिति मानी जाती है। यह महाशय जाति के ब्राह्मण थे और भरतपुर के महाराज जवाहरसिंह जी के पास रहते थे। इनकी भाषा में भरतपुर को छाया स्पष्ट लक्षित होती है। जवाहरसिंहजी के समकालीन भगवंत राय खींची के लिए भी इन्होंने कुछ छंद लिखे थे । हमारे देखने में इनकी दो पुस्तक प्राई-- १. ध्यानबत्तीसी, तथा २. दानलीला ध्यानबत्तीसी का उदाहरण-- इत पीत पट उत राजत है नील बर , इत मोरचन्द्रिका उतै उजास हास है। इत बनमाला उत राजत है मोतीमाला , इत खोर किए उत बैंदा कौ प्रकास है। कुण्डल स्रवन इत राजत तरौना उत , इत छुद्रघण्ट उत नूपर विलास है। इत संग सखा उत सोहे संग सखीगन , देखो दोऊ होड़ा होड़ी रचि राख्यौ रास है ।। दान लीला - दान लीला में रोला के दो चरण तथा एक बोहे के उपरान्त 'कहें ब्रज नागरी' अथवा 'सुनो ब्रज नागरी' टेक प्राती है-- दान दैन तुम कहत दान नवग्रह के होई । विप्र पात्र जो होय वेद को पाठक कोई ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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