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अध्याय ५ - नीति, युद्ध, इतिहास-संबंधी
ग्रीषम बीती रित गई, गई पतंगी भाम । अब बरसा पाही प्रघट, ताको सुन अनुराग ।। बरसा मै बहु षेल, नरनारी खेलें प्रघट । तामे रस को मेल, लाल ष्याल वरनन करौ।।
कवि सभी प्रकार के लालों का वर्णन करने में असमर्थ है । केवल 'साहब के लाल' का ही वर्णन करना चाहता है
सब लालन को बरन त, बाढ़े ग्रन्थ अपार ।
तातै साहब लाल को, बरनी कर निरधार ।। साहब के लाल-बलष बुषारे को पातसाह
बलष बुषारै एक पातसा सवारी जात , ऊट परौ प्रान भए सब गात हैं। याही को चलाय देन चाल नहीं षोयो गयो, जैसे सुनमान लई झूठी जग बात है। एक लाल कौन कहै छोड़े हैं अनेक लाल , साहब के लालन की ऐसी बड़ी जात है। कौन लाल कौन भयो कौन जाने कौन रीत , देषो अब जाकी जग ध्वजा फैरात है ।। साहब लाल अनेक हैं, वरन् सके कवि कौन ।
ग्रन्थ बड़े वीस्तार पै, तातै गही मत मौन ॥ इस प्रकार इस पुस्तक में साहब के लाल और उनकी जोटों का वर्णन है। लाल-संग्राम इसकी विशेषता है।
इस अध्याय के अंतर्गत मत्स्य में प्राप्त विविध प्रकार का साहित्य उपस्थित किया गया है । इनमे से प्रत्येक की अपनी-अपनी विशेषता है, किन्तु युद्ध तथा इतिहास सम्बन्धी साहित्य विशेष रूप से उल्लेखनीय है ।
१. इसमें काव्य के साथ ही ऐतिहासिक महत्त्व सर्वत्र मिलता है। वर्णन अत्यन्त प्रामाणिक हैं और इतिहास द्वारा सत्य सिद्ध होता है।
२. इस साहित्य में अतिशयोक्तिपूर्ण कविता कम मिलती है। भूषण जैसे राष्ट्रीय कवि भी इससे मुक्त नहीं। वीरगाथा काल वाले कवियों का तो कहना ही क्या है । किन्तु इस प्रदेश की तथ्यपूर्ण वर्णन-शैली को कभी नहीं भुलाया जा सकता । वीरता का बखान करते समय कुछ बढ़ावा भले ही हुवा हो किन्तु नाम, स्थान, संख्या, तिथि आदि के बारे में कवि बहुत सतर्क रहे हैं।
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