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मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन
२६६ यहाँ तक कि चंद के 'रासो' को भी कुछ लोगों द्वारा कल्पित और उसके बहुत से अंश को प्रक्षिप्त समझा जाता है । मत्स्य के काव्यों को इतिहास का पोषक समझना चाहिए । जहां कहीं साहित्य द्वारा इतिहास-प्रतिपादन का प्रसंग आवेगा वहाँ मत्स्य साहित्य को अवश्य ही प्राथमिकता मिलेगी। अपने प्राश्रयदातानों की वीरता का गान करते हुए भी इन कवियों ने अपनी वाणी पर पूरा संयम रखा और इतिहास के तथ्यों को रक्षा की।
३ इन काव्यों में युद्ध का चित्र उपस्थित करते समय कवियों ने प्रोजपूर्ण शैली का ऐसा सुन्दर संयोग किया है कि घटना को वास्तविकता का प्रानंद पाने लगता है । सूदन का सुजानचरित्र इस विषय में एक अनूठा ग्रंथ समझना चाहिए।
मत्स्य के साहित्य में भक्ति-संबंधी काव्य भी प्रचुर मात्रा में प्राप्त हुआ । रामाश्रयी धारा में विचित्र रामायण, अहिरावण तथा राम करुणनाटक, हनुमान नाटक, वाल्मीकि रामायण के अनुवाद, पदों में राम-कथा के प्रसंग, रामजन्मोत्सव आदि मूल्यवान पुस्तकें हैं । कृष्ण की तो यह लीला भूमि है ही और भरतपुर के राजाओं को 'व्रजेंद्र' कहलाने का गौरव प्राप्त है। कृष्ण की लीलाओं का गान यहां के राजा-प्रजा, अमीर-गरीब, हिन्दू-मुसलमान सभी ने किया और कृष्ण लीलाओं से संबंधित विभिन्न प्रकार के काव्यों की रचना हुई। कृष्ण की लीलाएं, रास पंचाध्यायी, अन्य मंगलों के साथ राधा-मंगल, होरो अादि अनेक प्रकार की काव्य सामग्रो दिखाई पड़ती है। निर्गुण संतों की वाणी निर्गुणिये भक्तों के द्वारा ही नहीं प्रत्युत् सगुण भक्तों के मुख से मुखरित होती है और प्रेममार्गीय शाखा भी 'प्रेम-रसाल' के रूप में गुलाममुहम्मद सुनाते हैं। इसके साथ ही प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों के अनुवाद भी मिलते हैं। उपनिषदों का प्रचार, देवी की उपासना आदि हिन्दू धर्म के अंग मत्स्य के साहित्य द्वारा परिवद्धित और पुष्ट हुए । इस साहित्य की कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं
१. यहाँ के साहित्य में राम और कृष्ण दोनों ही अवतारों को कथाएं समान रूप में मिलती हैं । मत्स्य में पाई गई सामग्री को देख कर यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि यहां राम-संबंधी साहित्य भी काफी लिखा गया। यह नोट करने की बात है कि मत्स्य का राम-संबंधी साहित्य इतना गम्भोर नहीं है जितना प्राय: पाया जाता है । भक्तों ने अपनी सहृदयता से राम-साहित्य को भी बहुत सरस बना दिया है ।
२. यहां के कवियों ने इस बात का विशेष ध्यान रखा है कि सरसता के साथ-साथ अवतारों के प्रति पूज्य-भाव में किसी प्रकार की कमी न पाने पावे ।
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