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अध्याय ८ - उपसंहार
अनेक शृंगार-प्रधान वर्णनों के होते हुए भी मत्स्य के कवियों ने इस बात को नहीं भुलाया कि कृष्ण और राम भगवान के अवतार हैं तथा उनकी शक्तियां सीता और राधा भी हमारे पूज्य भाव की अधिकारिणी हैं । दो एक स्थलों को छोड़कर यहां के साहित्य में वासनामय प्रसंग दिखाई नहीं पड़ते ।
३. इस प्रदेश के भक्ति-काव्य में सगुण और निर्गुण का एक विचित्र समन्वय पाया जाता है। चरणदासजी के द्वारा किया गया सगुण और निर्गुण का समन्वय तथा अन्य कवियों द्वारा राम और कृष्ण में सम्पूज्य भावना इस प्रदेश को परंपरा सी रही ।
मत्स्य में रीति संबंधी अनेक पुस्तकें लिखी गई और इन पुस्तकों में सभी विषयों का विवेचन हुआ। रससिद्धान्त, ध्वनिसिद्धान्त, अलंकारनिरूपण, पिंगलप्रकाश, नायक-नायिका भेद, सिखनख, ऋतुवर्णन आदि सभी विषयों पर पुस्तकें लिखी गईं। इस ओर काम करने वालों में कलानिधि, सोमनाथ. रसानंद, भोगीलाल, शिवराम, रामकवि, हरिनाथ, गोविंद, जुगलकवि, मोतीराम आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। हिन्दी के इतिहास में प्राचार्य और कवियों का विभाजन करने में प्रायः कठिनाई होती है। मत्स्य के कुछ कवि तो वास्तव में प्राचार्य नाम के अधिकारी हैं । संस्कृत के रीति-ग्रन्थों का अध्ययन
और मनन करने के उपरान्त ही यहां के कवियों ने अपने रीति-ग्रन्थ लिखे । भरत का नाट्यशास्त्र, विश्वनाथ का साहित्यदर्पण, मम्मट का काव्य-प्रकाश अभिनवगुप्त का 'लोचन' आदि रोति ग्रन्थ बहुत प्रिय रहे और इन्हीं के प्राधार पर रोतिसिद्धान्तों का प्रतिपादन करने की चेष्टा की गई। हिन्दी में प्रचलित पद्धति के अनुसार शृंगार रस का वर्णन करते हुए शृंगारी कविता की रचना भी हुई। यहां के रीति साहित्य में कुछ बातें विशेष रूप से देखी जाती हैं
१. मत्स्य के रीतिकारों ने रस और ध्वनि प्रादि मुख्य प्रसंगों को छोड़ा नहीं वरन् उनको पूरी व्याख्या की। ध्वनि, गुणीभूत व्यंग्य, अधम काव्य पर उसी प्रकार विचार किया गया जिस प्रकार संस्कृत के प्राचार्य करते थे। कुछ ग्रन्थों में तो अध्यायों का क्रम भी संस्कृत के प्रसिद्ध रीति ग्रंथों के अनुसार ही रखा गया। उनमें पिंगल-प्रकरण बढ़ाना यहां के रीतिकारों की विशेषता थी। हमारी खोज में अनेक पुस्तकें ऐसी मिली जो कि काव्य-विवेचन की दृष्टि से सर्वांगीण कही जा सकती हैं ।
२. प्राचार्यत्व के गुणों से पूर्ण कई कवि मिलते हैं। शिवराम, रसानद कलानिधि, हरिनाथ और सोमनाथ के द्वारा जो लक्षण और उदाहरण दिये गये हैं तथा उनका जो स्पष्टीकरण किया गया है उससे लेखकों की वैज्ञानिक बुद्धि
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