Book Title: Matsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Author(s): Motilal Gupt
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 294
________________ परिशिष्ट १ २७५ २५. चतुर - १०५, १०६, १०७ । चतुर नाम से अनेक पुस्तकों की रचना। १. तिलोचन लोला : लक्ष्मणजी को इष्ट मान कर की गई कविता । २. पद मंगलाचरण, वसंत होरी : लक्ष्मण-उर्मिला संबंधित श्रृंगार। २६. चतुरप्रिया – १०५ । २७. चतुरभुजदास - १५, १६७, २४८, २६४ । कायस्थों में निगम कुल में उत्पन्न हुए। ___ मधुमालती कथा : इसकी कई हस्तलिखित प्रतियां मिली जिनमें दो सचित्र भी हैं। २८. चतुर्भुज मिश्र - १८ । अलंकार-ग्राभा। २६. चन्द्रशेखर - २३ । हमीरहठ (सं० १६०२) के कर्ता। ३०. चरनदास -१६०, १६२, १६५, २६३, २६७ । उत्तरी भारत के प्रसिद्ध महात्मा : अलवर राज्य में डहरा के निवासी । शुकदेव के शिष्य । भार्गवोंद्वारा मान्य । १. ज्ञानस्वरोदय : प्राध्यात्मिक तथा दार्शनिक ग्रंथ । २. भक्तिसागर : सम्पूर्ण ग्रंथों का संग्रह, प्रकाशित । ३१. जयदेव - २४, १४३ । अलवर-राज्याश्रित । १. राधिकाशतक : १०० कवित्त, प्रकाशित । २. रामदल रासा, ३. प्रताप रासा, ४. महल रासा, ५. मानस की टीका प्रादि अनेक ग्रंथों के रचयिता। ३२. जयसिंह - २१६ । अलवर के महाराज । १. मेवाती गीतमाला : इनकी प्राज्ञा से किया गया संग्रह-ग्रंथ । २. शिकारसाहित्य : अनेक स्फुट छंदों में समय-समय पर लिखा संग्रह । 'वहशी' नाम से उर्दू में भी कविता करते थे। ३३. जाचीक जीवण - २४, १७०, १७२, १७८, १८१, १६७, २३६, २६८ । अलवर के प्रताप-कालीन कवि । प्रतापरासो : ऐतिहासिक सामग्री से परिपूर्ण ग्रंथ । राम से प्रतापसिंहजी तक का वर्णन । ३४. जीवाराम - ७, २६, १७६, २१६, २२०, २४८, २५२ । बलवंतकालीन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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