Book Title: Matsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Author(s): Motilal Gupt
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 306
________________ परिशिष्ट ३ कुछ अन्य कवि १, ब्रह्मभट्ट पूर्णमल्लजी ये अलवर नरेश महाराव राजा विनर्यासहजी के राजकवि थे। इनका जन्म संवत् १८९७ में हुआ । विद्याध्ययन के हेतु अपने ग्राम पीपलखेड़ा से काशी गए और संस्कृत का अध्ययन किया। इनका लिखा कोई ग्रन्थ तो नहीं मिलता, वसे इनकी स्फुट कविताएं काफी मिलती हैं जो उत्सवों पर राजदरबारों में सुनाई जाती थीं । ये संस्कृत और हिन्दी दोनों भाषाओं में कविता करते थे। हिन्दी के प्रसिद्ध कवि ग्वाल से इनका काव्य-विवाद हुआ था । अपनी पराजय स्वीकार करते हुए ग्वाल कवि ने कहा था-'इस समय सरस्वती प्राप पर ही प्रसन्न है।' उस समय की समस्यापूर्ति का एक उदाहरण समस्या- 'कैसे के बखान करूं मेरे तो है एक जीभ' पूर्ति- कीन्हों नाहिं वेद पदे भयौ बलमीक तै न , जन्म्यो न नाभि हरिदारन असुर ईभ । भाष्यकार नाहि पुनि कहि न पुराण कथा , जागत जगत जस पावन सुरसरीभ ।। पूरण प्रमित होत रजकण हू की कभू , देव मग देख दक्ष गिनती गिने गुनीभ । गनन अधिकान अप्रमाण भगवान तब , कैसे के बखान करूं मेरे तो है एक जीभ ।। विनर्यासहजी की प्रशंसा में कहा गया संस्कृत श्लोक अहनि नो रविणा परिभूयते, हसति नेन्दुरिवासितपक्षके । चरमवारिधिवारि न मज्जति, जयति ते विनयेशयशः शशी ।। बसन्त की बहार--- ललित लवंग लवलीन मलयाचल की, मंजु मृदु मारुत मनोज सुखसार है। मौलसिरी मालती सुमाधवी रसाल मौर , मौरन पै गुञ्जत मिलिन्दन को भार हैं। कोकिला कलाप कल कोमल कुलाहल के , पूरण प्रतिच्छ कुहू कुहू किलकार है। बाटिका बिहार बाग वीथिन विनोद बाल, विपिन बिलोकिवो बसन्त की बहार है। २. ठाकुर बिडदसिंह 'माधव' यह किशनपुर के जागीरदार थे। इनका जन्म संवत् १८६७ में हुया । कविराव गुलाबसिंहजी के पास विद्याध्ययन किया और उनको कृपा से संस्कृत-हिन्दी के अच्छे पंडित हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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